________________ 284 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: षष्ठो विभागः गोयमा ! सादीए अपजवसिते 3 / दारं 11 // सूत्रं 250 // भवसिद्धिए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा अणादीए सपजवसिते 1 / अभवसिद्धिए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! अणादीए अपजवसिते 2 / नोभवसिद्धिए-नोत्रभवसिद्धिए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! सादीए अपजवसिते 3 / दारं 20 // सूत्रं 251 // धम्मत्थिकाए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! सव्वद्धं, एवं जाव श्रद्धासमए / दारं 21 // सूत्रं 252 // चरिमे णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! प्रणादीए सपजवसिते 1 / अचरिमे णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! अचरिमे दुविधे पनत्ते, तंजहा-अणादीए वा अपजवसिते सादीते वा अपजवसिते 2 / दारं 22 // सूत्रं 253 // पराणवणाए भगवईए अट्ठारसमं कायट्ठिइनामपयं समत्तं // // इति अष्टादशमं पदम् // 18 // // अथ सम्यक्त्वाख्यं एकोनविंशतितमं पदम् // ___जीवा णं भंते ! किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्टी ?, गोयमा ! जीवा सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि 1 / एवं नेरझ्यावि 2 / असुरकुमारादि एवं चेव जाव थणिय कुमारा 3 / पुढवीकाइया णं पुच्छा, गोयमा ! पुढवीकाइया णो सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी 4 / एवं जाव वणस्सइकाइया 5 / बेइंदिया णं पुच्छा, गोयमा ! बेइंदिया सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी 6 / एवं जाव चरिंदिया 7 / पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया य सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि = / सिद्धा णं पुच्छा, गोयमा ! सिद्धा णं सम्मदिट्ठी, णो मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी ॥सूत्रं 254 // पन्नवणाभगवईए एगुणवीसइमं सम्मत्तपदं समत्तं // 11 // .. // इति एकोनविंशतितमं पदम् // 19 //