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________________ 318 / श्रीमदागमसुधासिन्धुः / पञ्चमो विभागः ऊसिय-जयविजय-वेजयंती-पडागातिपडागमंडितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणिं लाउल्लोइयमहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं गोसीससरस-रत्तचंदण-दइर-दिराणपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं उवचिय-चंदणकलसं चंदण-घड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं अासत्तोसत्त-विपुल-बट्ट-वग्धारित-मल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं पंचवरण-सरस-सुरभि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलितं करेंति, अप्पेंगइया देवा विजयं कालागुरु-पवर-कुंदुरुक-तुरुक-धूवडझंत-मघमतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेंति, अप्पे- ' गइया देवा हिरगणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवराणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं वइरवासं पुप्फवासं मल्लवासं गंधवासं चुराणवासं वस्थवासं पाहारणवास, अप्पेगइया देवा हिरगणविधि भाइंति, एवं सुवरणविधि रयणविधि वतिरविधि पुष्फविधि मल्लविधि चुगणविधिं गंधविधि वस्यविधि भाइंति श्राभरणविधि 1 | अप्पेगतिया देवा दुयं गट्टविधि उवदंसेंति थप्पेगतिया विलंबितं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगझ्या देवा दुतविलंबितं णाम णट्टविधि उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा अंचियं णट्टविधि अदंसेंति अप्पेगतिया देवा रिभितं णट्टविधि उवदंसेंति अप्पेगतिया अंचितरिभितं णाम दिव्वं णविधि उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा श्रारभडं णट्टविधि उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा भसोलं णट्टविधि उपदंसेंति अप्पेगतिया देवा पारभडभसोलं णाम दिव्वं पट्टविधिं वदंति अप्पेगतिया देवा उप्पायणिवायपवुत्तं संकुचियपासारियं रियारियं भंतसंभंतं णाम दिव्वं णविधि उवदंसेंति अप्पेगतियां देवा चउबिधं वातियं वादेति, तंजहा-ततं विततं घणं झुसिरं, अप्पेगतिया देवा चउविधं गेयं गातंति, तंजहा-उक्खित्तयं पवत्तयं मंदायं रोइदावसाणं, अप्पेगतिया देवा चउब्विधं अभिणयं अभिणयंति, तंजहा-दिट्ठतियं पार्ड. तियं सामंतोवणिवातियं लोगमज्भावसाणियं, अप्पेगतिया देवा पीणंति
SR No.004366
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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