________________ श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् :: तृतीया प्रतिपत्तिः } / 255 मिच्छत्तकिरियं पकरेइ तं समयं संमत्तकिरियं पकरेड, संमत्तकिरियापकरणताए मिच्छत्तकिरियं पकरेति मिच्छत्तकिरियापकरणताए संमत्तकिरियं पकरेति 1 / एवं खुल एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरितातो पकरेति, तंजहासंमत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च, से कहमेतं भंते ! एवं ?, गोयमा ! जन्नं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पराणवेंति एवं परति एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियायो पकरेति तहेव जाव सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च 2 | जे ते एबमाइंसु तं णं मिच्छा, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेति, तंजहा-संमत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा, जं समयं संमत्तकिरियं एकरेति णो तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति, तं चेव जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति नो तं समयं संमत्तकिरियं पकरेति, संमत्तकिरियापकरणयाए नो मिच्छत्तकिरियं पकरेति मिच्छत्तकिरियापकरणयाए णो संमत्तकिरियं पकरेति 3 / एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेति, तंजहा-संमत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा // सू० 104 // से तं चाम्बिह पडिवत्तीए तिरिक्खजोणियउद्देसयो बीयो समत्तो॥ // इति तृतीयप्रतिपत्तौ तिर्यगधिकारे द्वितीय उद्देशकः // 3-2-2 // // अथ तृतीयप्रतिपत्तौ मनुष्याधिकारे प्रथमोद्देशकः // ... से किं तं मणुस्सा ?, मणुस्सा दुविहा पराणत्ता, तंजहा-समुच्छिममणुस्मा य गम्भवक्कंतियमणुस्सा यं // सू० 105 // से किं तं समुच्छिममणुस्सा ?, 2 एगागारा पराणत्ता 1 / कहि णं भंते ! संमुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ?, गोयमा ! अंतोमणुस्सखेत्ते जहा पराणवणाए जाव सेत्तं संमुच्छिममणुस्सा 2 // सू० 106 // से कि तं गम्भवक्कंतियमणुस्सा ?, 2 तिविधा पराणत्ता, तंजहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा॥सू० 107 //