________________ 220 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / पञ्चमो विभागः पुनरवि तिराहपि जहापुचि भणिया, अंतरंपि तिराहंपि जहापुब्बिं भणियं तहा नेयव्वं 2 // सू० 63 // तिरिक्खजोणित्थियायो तिरिक्खजोणियपुरिसेहितो तिगुणाउ तिरूवाधियायो मणुस्सित्थियागो मणुस्सपुरिसेहितो सत्तावीसतिगुणात्री सत्तायीसयरूवाहियात्रो देवित्थियात्रो देवपुरिसेहितो बत्तीसइगुणायो बत्तीसइख्वाहियायो सेत्तं तिविधा संसारसमावराणगा जीवा पराणत्ता 1 / तिविहेसु होइ भेयो ठिई य संचिट्ठणंतरऽप्पबहुं / वेदाण य बंधठिई वेश्रो तह किंपगारो उ // 1 // से तं तिविहा संसारममावन्नगा जीवा पराणत्ता // सू०६४॥ तिविह-पडिवत्ती समत्ता // // इति द्वितीया प्रतिपत्तिः // 2 // ॥अथ चतुर्विधाख्य-तृतीय-प्रतिपत्तौ नैरयिकाख्य-प्रथमोद्देशकः॥ तत्थ जे ते एवमाहंसु चउविधा संसारसमावरणगा जीवा पराणत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-नेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा // सू० 65 // से किं तं नेरझ्या ?, 2 सत्तविधा पराणत्ता, तंजहा-पढमापुढविनेरइया दोचापुढविनेरइया तचापुढविनेरइया चउत्थापुढवीनेरइया पंचमापुढविनेरइया छट्टापुढविनेरइया सत्तमापुढविनेरइया / सू० 66 // पढमा णं भंते ! पुढवी किनामा. किंगोत्ता पराणत्ता ?, गोयमा ! णामेणं घम्मा गोत्तेणं रयणप्पभा 1 / दोचा णं भंते ! पुढवी किंनामा किंगोत्ता पराणत्ता ?, गोयमा ! णामेणं वंसा गोत्तेणं सक्करप्पभा 2 / एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासि पुच्छा, णामाणि इमाणि से लातव्वा(णि), (सेला तईया) अंजणा चउत्थी रिट्ठा पंचमी मघा छट्ठी माघवती सत्तमी, (जाव) तमतमागोत्तेणं पराणत्ता 3 ( घम्मा वंसा सेला अंजण रिट्ठा मघा य माघवती। सत्तराहं पुढवीणं एए नामा उ नायव्वा // 1 // रयणा सक्कर वालुय पंका धूमा तमा य तमतमा य। सत्तरहं पुढवीणं एए गोत्ता मुणेयव्वा // 2 //