________________ // अहम् // श्रीचतुर्दशपूर्वधर-श्रुतस्थविर-विहितं // श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् // . . (तृतीयमुपाङ्गम् ) . - -* // अथ द्विविधाख्या प्रथमा प्रतिपत्तिः // ॥ऐं नमः // इह खलु जिणमयं जिणाणुमयं जिणाणुलोमं जिणप्पणीतं जिणपरूवियं जिणक्खायं जिणाणुचिन्नं जिणपण्णत्तं जिणदेसियं जिणपसत्थं अणुब्बीइए तं सदहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा थेरा भगवंतो जीवाजीवाभिगम-णाममज्झयणं पराणवइंसु // सू० 1 // से किं तं जीवाजीवाभिगमे ?, जीवाजीवाभिगमे दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-जीवाभिगमे य अजीवाभिगमे य॥ सू० 2 // से किं तं यजीवाभिगमे ?, यजीवाभिगमे दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-रूवियजीवाभिगमे य अरूवित्रजीवाभिगमे या|सू० 3 // से कि तं अरूवियजीवाभिगमे?, अरूवित्रजीवाभिगमे दसविहे पन्नत्ते, तंजहाधम्मत्थिकाए एवं जहा पराणवणाए जाव सेत्तं अरूविश्रजीवाभिगमे / सू० 4 // से किं तं रूविग्रजीवाभिगमे ?, रूविधजीवाभिगमे चरविहे पराणत्ते, तंजहा-खंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला, ते समासतो पंचविहा पराणत्ता, तंजहा-वराणपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया, एव ते जहा पराणवणाए, सेत्तं रूवियजीवाभिगमे, सेत्तं अजीवाभिगमे // सू० 5 // से किं तं जीवाभिगमे ?, जीवाभिगमे दुविहे पराणत्ते, तंजहा-संसारसमावराणग-जीवाभिगमे य असंसारसमावराणग अजीवाभिम जहा-रूविग्रजीवाभावजीवाभिगमे दसाम / सू०