________________ श्रीराजप्रश्नीय-सूत्रम् [ 145 महाजणसह च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था 2 / किं णं अज जाव सावत्थीए णयरीए इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा रुद्दमहे इ वा मउंदमहे इ वा सिवमहे इ वा वेसमणमहे इ वा नागमहे इ वा जक्खमहे इ वा भूयमहे इ वा थूममहे इ वा चेइयमहे इ वा रुक्खमहे इ वा गिरिमहे इ वा दरिमहे इ वा अगडमहे इ वा नईमहे इ वा सरमहे इ वा सागरमहे इ वा जं णं इमे बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा राइन्ना (इक्खागा णाया कोरवा) जाव इब्भा इन्भपुत्ता अराणे य बहवे राया-ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इभ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो राहाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सिरसा-कठेमालकडा प्राविद्धमणिसुवरणा कप्पियहार-प्रद्धहार-तिसर-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तयक्यसोहाहरणा चंदणोलित्तगायसरीरा पुरिसवग्गुरापरिखित्ता महया उकिट्ठ-सीह-णाय-बोलकलकलरवेणं एगदिमाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया हयगया जाव अप्पेगतिया गयगया पायचारविहारेणं महया महया वंदावंदरहि निग्गच्छंति एवं संपेहेइ संपेहित्ता कंचुइजपुरिसं सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी-किं णं देवाणुप्पिया ! अज . सावत्थीए नगरीए इंदमहे इ वा जाव सागरमहे इ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगा जाव णिग्गच्छंति? 3 / तए से कंचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स अागमण-गहियविणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया ! अज सावत्थीए णयरीए इंदमहे इ वा जाव सागरमहे इ वा जे णं इभे बहवे जाव विंदाविंदरहिं निग्गच्छंति, एवं खलु भो ! देवाणुप्पिया! पासावचिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जाइसम्पन्ने जाव दुइजमाणे इहमागए जाव विहरइ, तेणं अज सावत्थीए नयरीए बहवे उग्गा जाव इब्भा इब्मपुत्ता अप्पेगतिया वंदणवत्तियाए जाव महया वंदावंदएहि णिग्गच्छति 4 // सू० 148 // तए णं से चित्ते सारही कंचुइपुरिसस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म .