________________ श्रीमद्-विपाकसूत्रम् / / श्रु० 2 :: अध्ययनं 9.10 ] [ 465 - // अथ महाचन्द्राख्यं नवममध्ययनम् // णवमस्म उक्खेवो-चंपा नगरी पुन्नभद्दे उजाणे, पुन्नभदो जवखो, दत्ते राया, रत्तवई देवी, महचंदे कुमारे जुवराया, सिरिकंतापामोक्खा णं पंचसया कन्ना जाव पुव्वभवो, तिगिञ्छी णगरी, जियसत्तू राया, धम्मवीरिये श्रणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे // सू० 31 // नवमं अज्झयणं समत्तं // 1 // . // अथ वरदत्ताख्यं दशममध्ययनम् // जति णं दसमस्स उक्खेवो, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं साएयं णामे णगरे होत्था उत्तरकुरू उजाणे, पासमियो जक्खो, मित्तनंदी राया, सिरिकता देवी, वरदत्ते कुमारे वरसेणपामोक्खा णं पंच देवीसया, तित्थयरागमणं, सावगधम्म पुव्वभवो पुच्छा, मणुस्साउए निबद्धे, सतवारे नगरे, विमलवाहणे राया, धम्मरचिनामं श्रणगारं एजमाणं पासति 2 . पडिलाभिते समाणे मणुस्साउते निबद्धे, इहं उप्पन्ने, सेसं जहा सुबाहुयस्स कुमारस्स चिंता जाव पव्वजा, कप्पंतरियो जाव सव्वट्ठसिद्धे ततो महाविदेहे जहा दढपइन्नो जाव सिझहिति बुझिहिति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति // एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स श्रयम? पन्नत्ते, सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरति। सुहविवागा॥ सू० 40 // दसमं अज्झयणं समत्तं // // इति दशममध्ययनम् // श्रु० 2 अ० 10 आदितः 20 // // इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः॥