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________________ श्रीमद्-विपाकसूत्रम् :: श्रु० 1 :: अध्ययन 3 ] [ 447 तो अशांतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए महिसत्ताए पञ्चायाहिति 8 / सेणं तत्थ अन्नया कयाई गोहिल्लएहिं जीविश्रायो कारोविए समाणे तत्थेव चपाए नयरीए सेट्टिकुलसि पुत्त(म)त्ताए पञ्चायाहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहाख्वाणां थेराणां अंतिते केवलं बोहिं अगगारे सोहम्मे कप्पे जहा पढमे जाव अंतं करेहिति 1 / निक्खेवो // सू० 13 // बितियं अज्झयणां सम्मत्तं // . // इति दितीयमध्ययनम् // श्रु० १-अ० 2 // // अथ अभग्नसेनाख्यं तृतीयमध्ययनम् // - तबस्स उवखेवो-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरिमताले णामं णगरे होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्धे, तस्स णं पुरिमतालस्स णगरस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ णं अमोहदंसणे उजाणे तत्थ णं अमोहदंसिस्स जवखस्स जवखाययणे होत्था, तत्थ णं पुरिमताले महब्बले नामं राया होत्या, तत्थ णं पुरिमतालस्स नगरस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीमाए देसप्पंते अडवी संठिया 1 / एत्थ णं सालानाम अडवी चोरपल्ली होत्था विसम-गिरिकंदर-कोलंब-सरिण विट्टा वंसी-कलंक-पागार-परिविखत्ता छिराणसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा अभितर-पाणीया सुदुल्लभ-जलपेरंता अणेगखंडी विदित-जण-दिन-निग्गमपवेसा सुबहुयस्सवि कुवियस्स जणस्स दुप्पहंसा यावि होत्था 2 / तत्थ णं सालाडवीए चोरपल्लीए विजए णामं चोरसेणावई परिवसति अहम्मिए जाव विहरति, हण-छिन्न भिन्न-वियत्तए लोहियपाणी बहु-णगर-णिग्गयजसे सूरे दढप्पहारे साहसिए सहवेही असिलट्ठि-पढममल्ले, से णं तत्थ सालाडवीए चोरपल्लीए पंचराहं चोरसतागां श्रावच्चं जाव विहरति 3 // सू० 14 // तते णं से विजए चोरसेणावई बहूणां चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयाण य संधिच्छेयाण य खंडपट्टाण
SR No.004365
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, agam_anuttaropapatikdasha, agam_prashnavyakaran, & agam_vipakshrut
File Size12 MB
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