________________ 429 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागा संवरा वित्थरेण उ पणवीसति-समिय-सहियसंवुडे सया जयण-घडणसुविसुद्धदंसणे एए अणुचरिय संजते चरमसरीरधरे भविस्सतीति 11 / वायगांतरे पुण एयाणि पंचावि सुव्वय ! महत्वयाणि लोकधिइकराणि, सुयसागर-देसियाणि संयम-सीलब्वय-सच्चजवमयाणि, नरय-तिरिय-देव-मणुयमइविवजयाणि, सव्वजिण-सासणाणि, कम्मरयवियारकाणि, भवसयविमोयगाणि, दुःक्खसय-विणासकाणि, सुक्खमय-पवत्तयाणि कापुरुषसुदुरु त्तराणि सप्पुरिस-जणतीरियाणि, निव्वाण गमणजाणाणि कहियाणि सग्गपवायकाणि पंचावि महब्बयाणि कहियाणि 20 ॥सूत्रं 21 // पाहावागरणे णं एगो सुयक्खंधो दस अज्झयणा एकसरगा दससु चेव दिवसेसु उदिसिज्जति एगंतरेसु आयंबिलेसु निरुद्धेसु थाउत्तभत्त पाएणं अंगं जहा पायारस्स // सूत्रं 30 // ॥इति दशममध्ययनम् // . // इति प्रश्न-व्याकरण-सूत्रं दशमाङ्ग समाप्तम् // [ ग्रन्थाग्रं 1300 ]