________________ श्रीमत्प्रश्नव्याकरणदशाङ्ग-स्त्रम् : अध्ययनं 5 ] (401 य अट्टाए करंति पाणाण वहकरणं 7 / श्रलिय-नियडि-साइसंपश्रोगे परदव्वे अभिजा सपरदार-अभिगमण-सेवणाए श्रायास-विसूरणं कलहभंडण-वेराणि य अवमाणण-विमाणणायो इच्छा-महिन्छ-प्पिवास-सतततिसिया तराहगेहि लोभवत्था अत्ताणा अणिग्गहिया करेंति कोह-माणमाया-लोभे, अकित्तणिज्जे परिग्गहे चेव होंति नियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाया सन्ना य कामगुण-राहगा य इंदियलेसायो सयणसंपयोगा सचित्ताचित्तमीसगाई दबाई अणंतकाई इच्छंति परिघेत्त सदेवमणुयासुरम्मि लोए लोभपरिग्गहो जिणवरेहिं भणियो 8 / नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अस्थि सव्वजीवाणं सव्वलोए 1 // सू० 11 // परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविट्ठा महया-मोह-मोहियमती तिमिसंघकारे तस-थावर-सुहुम-बादरेसु पजत्त-मपजत्तग एवं जाव परियति दीहमद्धं जीवा लोभवस-संनिविट्ठा। एसो सो परिग्गहस्स फलविवाश्रो इहलोइयो, परलोइयो, अप्पसुहो, बहुदुक्खो, महब्भो , बहुरयप्पगाढो, दारुणो, ककसो, असायो वाससहस्सेहिं मुन्चइ, न अवेतित्ता अस्थि हु मोक्खोत्ति 1 / एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरखर-नामधेजो कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं 2 / एसो सो परिग्गहो पंचमो उ नियमा नाणामणि-कणग-रयणमहरिह एवं जाव इमस्स मोरख-वर-मोत्तिमग्गस्स फलिहभूयो, चरिमं अधम्मदारं समत्तं / / सू० 20 // एएहिं पंचहिं श्रासवेहिं रयमादिणि तु श्रणुसमयं / चउविहगइ दुह (जीव) पेरंत अणुपरियट्टति संसारं // 1 // सव्वगई पक्खंदे काहंति घणंतए अकयपुराणा। जे य न सुणंति धाम सोऊण य जे पमायंति // 2 // अणुसिटुंपि बहुविहं मिच्छदिट्टीयो जे नरा। ग्रहमा बद्ध-निकाइय-कम्मा सुणंति धम्मं न य करंति // 3 // किं सका काउं जे जं नेच्छह श्रोसहं मुहा पायो। जिणवयणं गुणमहुरं विरेयणं सव्वदुक्खाणं // 4 // पंचेव य ऊन्झिऊण पंचेव य रक्खिउण भावेण / कम्मरय-विष्पमुक्का सिद्धि-वर-मणुजरं जंति // 5 // // इति भासवदारा सम्मत्ता // // इति पञ्चममध्ययनम // 5 //