________________ श्रीमत्प्रनव्याकरणदशाङ्ग-सूत्रम् : अध्ययनं 4 / / 393 दप्पमहणा जमलज्जुणभंजगा, महासउणि-पूतणा-रिवू, कंस-मउड-तोडगा, जरासिंघ-माणमहणा, तेहि य (अभपडल-पिंगल-उजलेहि) अविरलसमसहिय-चंदमंडल-समप्पभेहिं सूर-मिरीय-कवयविणिम्मुयंतेहिं सपतिदंडेहिं श्रायवत्तेहिं धरिज्जतेहिं विरायंता, 1 / ताहि य पवर-गिरिकुहरविहरण-समुट्ठियाहिं, निस्वहय-चमर-पच्छिम-सरीरसंजाताहिं श्रमइलसेय-कमल-विमुकुलुजलित-रयण-गिरिसिहर-विमल-ससिकिरण-सरिसकलहोयनिम्मलाहिं पवणाहय-चवल-चलिय-सललिय-पणचिय-वीइपसरिय-खीरोदग-पवर-सागरुप्पूर-चंचलाहिं माणस-सर-पसर-परिचियावास-विसदवेसाहिं कणगगिरि-सिहर-संसिताहिं उवाय-उप्पात-चवलजयिण-सिग्घवेगाहिं हंसवधूयाहिं चेव कलिया, 10 / नाणामणि-कणगमहरिह-तबणिज्जुजल-विचित्तडंडाहिं सललियाहिं नरवति-सिरिसमुदयप्पगासणकरीहिं वरपट्टणुग्गयाहिं समिद्ध-रायकुल-सेवियाहि कालागुरुपवरकुंदुरुक-तुरुक-धूव-वास-विसद-गंधुद्भूयाभिरामाहिं चिल्लिकाहिं उभयोपासपि चामराहिं उक्खिप्पमाणाहिं सुह-सीतल-वातवीतियंगा, अजिता, अजितरहा, हल-मुसल-कणगपाणी, संख-चक्क-गय–सत्ति-णंदगधरा, पवरुज्जलसुकत-विमल-कोथूम-तिरीडधारी, 11 / कुंडल-उज्जोवियाणणा, पुंडरीय-णयणा, एगावली-कंठ-रतियवच्छा, सिरिवच्छ-सुलंछणा, वरजसा, सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-सुरइय-पलंब-सोहंत-वियसंत-चिल्ल(त) वण-माल-रतियवच्छा, अट्ठसय-विभत्त-लक्खण-पसत्य-सुदर-विराइयं. गमंगा, मत्त-गयवरिंद-ललिय-विक्कम-विलसियगती, कडिसुत्तग-नीलपीत-कोसिजवाससा, पवरदित्ततेया, सारय-नवथणिय-महुर-गंभीरनिद्धघोसा, नरसीहा, सीहविक्कमगई, प्रथमिय-पवर-रायसीहा, सोमा, बारवइपुन्नचंदा, पुवकय-तवणभावा, निविट्ठ-संचियसुहा, अणेग-वाससयमाउवंता भज्जाहि य जणवयप्पहाणाहिं लालियंता, अतुल-सद्द-फरिस-रस