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________________ श्रीमदन्तकद्दशाङ्ग-सूत्रम् वर्गः 8 ] [ 343 गां भंते ! अज्झयणस्स समणेणां जाव संपत्तेगां के अट्ठ पन्नत्ते ?, एवं खलु जंबू ! ते गां काले गां 2 रायगिहे नगरे गुणसिलते चेतिते सेणिते राया वन्नतो, तस्स गां सेणियस्स रराणो नंदा नाम देवी होत्था वनयो, सामी समोसढे परिसा निग्गता, तते गां सा नंदादेवी इमीसे कहाते लट्ठा कोडुबियपुरिसे सद्दावेति 2 जागां जहा पउमावती जाव एकारस अंगाई अहिजित्ता वीसं वासाई परियातो जाव सिद्धा। एवं तेरसवि देवीयो णंदागमेण णेयव्वातो // सू० 16 // सप्तमो वग्गो समत्तो-७ // // 8 // अथ अष्टमो वर्गः // जति णं भंते ! अट्ठमस्स वग्गस्स उक्खेवश्रो जाव दस अज्झयणा पराणत्ता, तं जहा-काली 1 सुकाली 2 महाकाली 3 कराहा 4 सुकराहा 5 महाकराहा 6 / वीरकराहा 7 य बोद्धव्वा रामकराहा 8 तहेव य // 1 // पिउसेणकराहा 1 नवमी दसमी महासेणकराहा 10 य // 1 / जति णं भंते ! अट्ठमस्त वग्गस्स दस अज्झयणा, पढमस्स अज्झयणस्स के पट्टे पन्नत्ते ?, एवं खलु जंबू ! ते णं काले णं 2 चंपा नाम नगरी होत्था, पुनभद्दे चेतिते, तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया वराणतो, तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्त रनो भजा कोणियस्स रराणो चुल्लमाउया काली 'नामदेवी होत्था, वराणतो, जहा नंदा जाव सामातियमातियातिं एकारस अंगाई अहिज्जति, बहूहिं चउत्थ-छट्टट्ठम-दसमदुवालसेहिं जाव अप्पाणं भावमाणी विहरति, तते णं सा काली अराणया कदाइ जेणेव अजचंदणा अजा तेणेव उवागच्छति 2 एवं वयासी-इच्छामि णं अजायो ! तुब्भेहिं अब्भणुराणाता समाणा रयणावलिं तवं उपसंपज्जेत्ताणं विहरेत्तते, अहासुह, देवाणुप्पिया, 2 / तते णं सा काली अजा अजचंदणाए अब्भणुराणाया समाणा रयणावलि उवसंपजित्ताणं विहरति, तंजहा-चउत्थं करेति चउत्थं करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेति, सर्वकामगुणियं पारेत्ता छ8 करेति 2
SR No.004365
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, agam_anuttaropapatikdasha, agam_prashnavyakaran, & agam_vipakshrut
File Size12 MB
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