________________ श्रीमदुपासकदशाङ्ग-सूत्रम् :: अध्ययनं 2 ) [ 281 परिक्खित्ते सयायो गिहायो पडिणिक्खमइ 2 चम्पं नगरिं मझमझेणं निग्गच्छइ 2 जेणेव पुराणभद्दे चेइए जहा सङ्खो जाव पज्जुवासइ 2 / तए णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्त समणोवासयस्त तीसे य जाव धम्मकहा समत्ता 3 // सू० 24 // कामदेवाइ ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-से नूणं कामदेवा तुभं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तिए पाउब्भूए, तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउब्वइ 2 श्रासुरुत्ते 4 एगं महं नीलुप्पल जाव असिं गहाय तुमं एवं वयासी-हं भो कामदेवा ! जाव जीवियायो ववरोविजसि, तं तुमं तेणं देवेणं एवं दुत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि, एवं वराणगरहिया तिरिणवि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्या जाव देवो पडिगयो; से नूणं कामदेवा ! अठे समठे ?, हन्ता, अस्थि, अजो इ, 1 / समणे भगवं महावीरे बहवे समणे निग्गन्थे य निग्गन्थीयो य ग्रामन्तेत्ता एवं वयासी-जइ ताव अजो ! समणोवासगा गिहिणो गिहमज्भावसन्ता दिव्वमाणुसतिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्मं सहन्ति जाव अहियासेन्ति, सका पुराणाई अजो ! समणेहिं निग्गन्थेहिं दुवालसङ्गं गणिपिडगं अहिजमाणेहिं दिव्वमाणुस्सतिरिक्खजोणिए सम्म सहित्तए जाव अहियासित्तए, तो ते बवे समणा निग्गन्था य निग्गथीयो य समणस्स भगवयो महावीरस्स तहत्ति एयमट्ठं विणएणं पडिसुणन्ति 2 / तए णं से कामदेवे समणोवासए हट्ठ जावं समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ अट्ठमादियइ, समणं महावीर तिक्खुत्तो वन्दइ नमसइ 2 जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए 3 / तए णं समणे भगवं महावीरे अनया कयाइ चम्पायो पडिणिक्खमइ 2 बहिया जणवयविहारं विहरइ 4 // सू० 25 // तए णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसम्पजित्ताणं महावीरे बहवे समगै समणोवासगाभाय थामन्तेत्ता