________________ 254 ] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागः तं चेव सव्वं कहेइ जाव तए गां अहं सङ्किए 3 आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्तियायो पडिणिक्खमामि 2 जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए, तं णं भन्ते ! किं आणन्देणं समणोवासएणं तस्स ठाणस्स बालोएयव्वं जाव पडिवज्जेयव्वं उदाहु मए ?, गोयमा इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-गोयमा ! तुमं चेव णं तस्स ठाणस्स बालोएहि जाव पडिवजाहि, श्राणन्दं च समणोवासयं एयम8 खामेहि 4 / तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवयो महावीरस्त तहत्ति एयमट्ठविणएणं पडिसुणेइ 2 ता. तस्स गणस्स बालोएइ जाव पडिवजइ, प्राणन्दं च समणोवासयं एयमटुं खामेइ 5 / तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई बहिया जणवयविहारं विहरइ 6 // सू० 16 // तए णं से प्राणन्दे समणोवासए बहूहिं सीलब्बएहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एकारस य उवासगपडिमायो सम्मं कारणं फासित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सर्टि भत्ताई श्रणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिकन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किचा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरच्छिमेणं अरुणे विमाणे देवत्ताए उववन्ने 1 / तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पराणत्ता, तत्थ णं आणन्दस्सवि देवस्स चत्तारि पलिश्रोवमाई ठिई पण्णत्ता 2 / आणन्दे भन्ते ! देवे तायो देवलोगायो श्राउक्खएणं 3 अणन्तरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ कहिं उववजिहिइ ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ 3 / निक्खेवो // सू० 17 // सत्तमस्स अगस्स उवासगदसाणं पढमं अज्झयणं समत्तं // // इति प्रथमध्ययनम् // 1 //