________________ .. 202] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागा असम्भन्ते मुहपत्तिं पडिलेहेइ 2 ता भायणवत्थाई पडिलेहेइ. 2 ता भायणवत्थाई पमन्जइ 2 ता भायणाई उग्गाहेइ 2 ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ 2 ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ 2 त्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भन्ते ! तुम्भेहिं अभणुराणाए छट्टक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स "भिक्खायरियाए अडित्तए, 'हासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबन्धं करेह' 2 / तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण श्रब्भणुराणाए समाणे समणस्स भगवो महावोरस्स अन्तियायो दूइपलासायो चेइयायो पडिणिक्खमइ 2 अतुरियमचलवमसम्भन्ते जुगन्तरपरिलोयणाए दिट्ठीए पुरो ईरियं सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ 2 वाणियगामेनयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ 3 / तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे जहा पराणत्तीए तहा जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजत्तं भत्तपाणं सम्म पडिग्गाहेइ 2 वाणियगामाश्रो पडिणिग्गच्छइ 2 त्ता कोल्लायस्स सिन्नवेसस्स अदूरसामन्तेणं वीईवयमाणे बहुजणसद निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४–एवं खलु देवाणुप्पिया! समणस्त भगवो महावीरस्स अन्तेवासी आणन्दे नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम जाव अणवकङ्खमाणे विहरइ 4 / तए णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स अन्तिए एयमटुं सोचा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए .४-तं गच्छामि णं आणन्दं समणोवासयं पासामि, एवं सम्पेहेइ 2 जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे जेणेव पाणन्दे समणोवासए जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, तए णं से प्राणन्दे समणोवासए भगवं गोयमं एजमाणं पासइ 2 त्ता हट्ट जाव हियए, भगवं गोयमं वन्दइ नमसइ 2 ता एवं वयासी-एवं खलु भन्ते ! अहं इमेणं उरालेगां जाव धमणिसन्तए जाए, न संचाएमि देवाणुप्पियस्स अन्तियं पाउभवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेगां पाए