________________ 246 ] [ श्रीमंदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागः श्रादिगरेणं तित्थगरेणं जाव सिद्धिगइ-णामधेन्ज गणं संपत्तेणं एगूणवीसइमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठ पत्नत्ते 6 // इति पोंडरीयज्झयणं // ____ एवं खलु जंब ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेज्ज अणं संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स पढमस्स सुयक्खंधस्स अयमढे पराणत्तेत्तिबेमि७ // सूत्रं 152 // तस्स णं सुयक्खंधस्स एगूणवीसं अभयणाणि एकसरगाणि एगणवीसाए दिवसेसु समप्पंति // सूत्रं 153 // पढमो सुयक्खंधो समत्तो॥ // इति एकोनविंशतितममध्ययनम् 12 // // इति प्रथमः श्रुतस्कंधः समाप्त // // अथ द्वितीय श्रुतस्कंधः // // 1 // अथ प्रथमो वर्गः // तेणं कालेणं 2 रायगिहे नामं नयरे होत्था, वगणयो, तस्स णं : रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए तत्थ णं गुणसीलए णामं चेइए होत्था वगणो 1 / तेणं कालेणं 2 समणस्स भगवश्रो महावीरस्स अंतेवासी अजसुहम्मा णाम थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना जाव चउद्दसपुब्बी चउणाणोवगया पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुवाणुपुब्बि चरमाणा गामाणुगामं दूइजमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे णयरे जेगोव गुणसीलए चेइए जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति, परिसा निग्गया, धम्मो कहियो, परिसा जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया 2 / तेणं कालेणं 2 अजसुहम्मस्स - अणगारस्स अंतेवासी अजजंबू णामं अणगारे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स पढमसुयक्खंधस्स णायसुयाणं श्रयम? पन्नत्ते दोचस्स णं भंते ! सुयक्वंधस्स धम्मकहाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पन्नत्ते ?, एवं खलु