________________ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग-सूत्रम् :: अध्ययनं 14 ] [165 रंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे मम पायवंदते हव्वमागच्छति 10 / तते गां से ददुरे सेणियस्स रनो एगेणां श्रासकिसोरएणां वामपाएगां अक्कते समाणे अंतनिग्घातिए कते यावि होत्था, तते णां से दद्दुरे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकार-परक्कमे अधारणिज-मितिकटु एगंत-मवक्कमति 2 करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-नमोऽत्थु णं जाव संपत्तागां, नमोऽत्थु णं मम धम्मायरियस्स जाव संपाविउकामस्स पुब्बिंपिय णं मए समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतिए थूलए पाणातिवाए पञ्चक्खाए जाव थूलए परिग्गहे पञ्चक्खाए, तं इयाणिपि तस्सेव अंतिए सव्वं पाणातिवायं पञ्चक्खामि जाव सव्वं परिग्गहं पञ्चक्खामि, जावजीवं सव्वं असणां 4 पच्चक्खामि, जावजीवं जंपिय इमं सरीरं इ8 कंतं जाव मा फुसंतु एयपि णं चरिमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरामित्तिकटु 11 / तए णं से दद्दुरे कालमासे कालं किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे ददुरवडिंसए विमाणे उबवायसभाए ददुरदेवत्ताए उववन्ने, एवं खलु गोयमा ! ददुरेगां सा दिव्वा देविड्डी लद्धा 3, 12 / ददुरस्स णं भंते ! देवस्स केवतिकालं ठिई पराणत्ता ?, गोयमा ! चत्तारि पलियोवमाइं ठिती पन्नत्ता, से णं ददुरे देवे० महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुझिहिति जाव अंतं करेहिइ 13 / एवं खलु समणेणां भगवया महावीरेगां तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पराणत्तेत्तिबेमि 14 // सूत्रं 101 // तेरसमं णायज्झयणां समत्तं // ॥इति त्रयोदशममध्ययनम् // 13 // // 14 // अथ श्रीतेतलिपुत्राख्यं चतुर्दशममध्ययनम् // जति णं भंते ! समणेणां भगवया महावीरेगां जाव संपत्तेगां तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयम? पराणत्ते, चोदसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स समणेगां जाव संपत्तेगां के अटे पन्नत्ते ?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेगां 2