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________________ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग-सूत्रम् / / अध्ययनं 11 ] [ 151 वाया वायंति तदा णं बहवे दाववा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति अप्पेगतिया दावदवा रुक्खा जुन्ना झोडा परिसडियपंडुपत्तपुप्फफला सुकरक्खनो विव मिलायमाणा 2 चिट्ठांति, एवामेव समणाउसो ! जे अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पव्वतिते समाणे बहणं समणाणं 4 सम्मं सहति जाव अहियासेति बहूणं अराणउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहति जाव नो अहियासेति एस णं मए पुरिसे देसविराहए पराणत्ते समणाउसो! 2 / जया णं सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाता वायंति तदा णं बहवे दावद्दवा रुक्खा जुराणा झोडा जाव मिलायमाणा 2 चिट्ठति, अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुफिया जाव उवसोभेमाणा 2 चिट्ठांति, एवामेवसमणाउसो ! जो अहं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पब्बतिए समाणे बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्म सहति बहूणं समणाणं 4 नो सम्म सहति एस णं मए पुरिसे देसाराहए पन्नत्ते समणाउसो ! 3 / जया णं नो दीविचगा णो सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव महावाया तते णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा जुराणा झोडा जाव मिलायमाणा 2 चिट्ठांति, अप्पेगइया दावद्दवा रुपखा पत्तिया पुफिया जाव उपसोभेमाणा 2 चिट्ठांति, एवामेव समणाउसो! जाव पव्वतिए समाणे बहूणं समणाणं 2 बहूणं अन्नउत्थियगिहत्थाणं नो सम्मं सहति एस णं मए पुरिसे सव्वविराहए पराणत्ते. समणाउसो !, जया णं दीविचगावि सामुद्दगावि ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव वायाँत तदा णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठांति, एवामेव समणाउसो ! जे श्रम्हं पव्वतिए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं अन्नउत्थियगिहत्थाणं सम्म सहति एस णं मए पुरिसे सबाराहए पनत्ते ! एवं खलु गोयमा ! जीवा बाराहगा वा विराहगा वा भवंति, एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया एकारसमस्स अयम? पराणत्तेत्तिबेमि 4 // सूत्रं 17 // एकारसमं नायज्झयणं समत्तं॥ // इति एकादशममध्ययनम् // 11 //
SR No.004365
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, agam_anuttaropapatikdasha, agam_prashnavyakaran, & agam_vipakshrut
File Size12 MB
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