________________ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग-सूत्रम् / अध्ययनं 6 ] [ 63 उवसंपजित्ता णं विहरित्तए, एवं संपेहेंति 2 ता सेलयं रायं उवसंपजिताणं विहरंति 2 // सूत्रं 66 // तते णं ते सेलयपामोक्खा पंच अण. गारसया बहूणि वासाणि सामनपरियागं पाउणित्ता जेणेव पोंडरीये पव्वए तेणेव उवागच्छंति 2 जहेव थावचापुत्ते तहेव सिद्धा 1 / एवामेव समणाउसो ! जो निग्गंथो वा 2 जाव विहरिस्सति एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स णायज्झयणस्स अयम? पराणत्तेत्तिबेमि 2 // सूत्रं 67 // पंचमं नायज्झयणं समत्तं // // इति पञ्चममध्ययनम् // 5 // // 6 // श्रीतुम्बकाख्यं षष्ठमध्ययनम् // जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्त णायज्झयणस्स श्रयम? पन्नत्ते छट्ठस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पन्नत्ते ?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं 2 रायगिहे समोसरणं परिसा निग्गया 1 / तेणं कालेणं 2 समणस्स भगवयो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासो इंदभूती अणगारे अदूरसामंते जाव सुकन्झाणोवगए विहरति, तते णं से इंदभूती अणगारे जायस8. समणस्स 3 एवं वदासी-कहगणं भंते ! जीवा गुरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति ?, गोयमा ! से जहा नामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कं तु हिच्छिड्डे निस्वयं दम्भेहिं कुसेहिं वेढेइ 2 मट्टियालेवेणं लिंपति उराहे दलयति 2 सुक्कं समाणं दोच्चपि दभेहि य कुसेहि य वेटेति 2 मट्टियालेवेगां लिंपति 2 उराहे सुक्कं समाणां तच्चंपि दन्भेहि य कुसेहि य वेढेति 2 मट्टियालेवेगां लिंपति, एवं खलु एएणुवाएगां अंतरा वेढेमाणे अंतरा लिंपेमाणे अंतरा सुकवेमाणे जाव अहिं मट्टियालेवेहिं आलिंपति, अत्थाह-मतारम-पोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेजा, से गूणं गोयमा ! से तुबे तेसिं अट्ठाहं मट्टियालेवाणं गुरुय- .