________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतकं 14 :: उद्देशकः 7 ] [486 जाव अणझोववन्ने थाहारमाहारेति ?, हंता गोयमा ! भत्तपञ्चक्खायए णं अणगारे तं चेव 1 / से केण?णं भंते ! एवं वुचइ भत्तपञ्चक्खायए णं तं चेव ?, गोयमा ! भत्तपञ्चक्खायए णं अणगारे मुच्छिए जाव अमोववन्ने भवइ अहे णं वीससाए कालं करेइ तथो पच्छा अमुच्छिए जाव अाहारे भवड, से तेण?णं गोयमा ! जाव अाहारमाहारेति // सूत्रं 524 // अस्थि णं भंते ! लवसत्तमा देवा 2 ?, हंता अत्थि 1 / से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ लवसत्तमा देवा 2 1, गोयमा ! से जहानामए-केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए सालीण वा वीहीण वा गोधूमाण वा जवाण वा जवजवाण वा पकाणं परियाताणं हरियाणं हरियकंडाणं तिक्खेणं णवपजणएणं असिग्रएणं पडिसाहरिया 2 पडिसंखिविया 2 जाव इणामेव 2 त्तिकटू सत्तलवए लुएजा, जति णं गोयमा ! तेसिं देवाणं एवतियं कालं थाउए पहुप्पते तो णं ते देवा तेणं चेव भवग्गहणेणं सिझता जाव अंतं करेंता, से तेण?णं जाव लवसत्तमा देवा लवसत्तमा देवा // सूत्रं 525 // अस्थि णं भंते ! अणुत्तरोववाइया देवा 2 ?, हंता अत्थि 1 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ अणुतरोववाइया 2 ?, गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं अणुत्तरा सदा जाव अणुत्तरा फासा, से तेणतुणं गोयमा ! एवं बुच्चइ जाव अणुत्तरोववाइया देवा 2, 2 / अणुत्तरोववाइया णं भंते ! देवा णं केवतिएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववन्ना ?, गोयमा ! जावतियं छट्ठभत्तिए समणे निग्गंथे कम्म निजरेति एवतिएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववाइया देवा देवत्ताए उववन्ना 3 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 4 // सूत्रं 526 // // इति चतुर्दशमशतके सप्तम उद्देशकः // 14-7 //