________________ 488 ) ( श्रीमदागमसुधासिन्धुः / तृतीयो विभागः अस्स पोग्गलस्स काल यो तुल्ले, एगसमयट्टितीए पोग्गले एगसमयठितीवइरित्तस्स पोग्गलस्स कालो णो तुल्ले, एवं जाव दससमयट्टितीए तुलसंखेजसमयठितीए एवं चेत्र, एवं तुल-असंखेज-समयठितीएवि, से तेण?णं जाव कालतुल्लए 2, 4 / से केण?णं भंते ! एवं वुन्चइ भवतुलए 2 ?, गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स भवट्ठयाए तुल्ले नेरइयवइरित्तस्स भवठ्ठयाए नो तुल्ले, तिरिक्खजोणिए एवं चेव, एवं मणुस्से एवं देवेवि, से तेण?णं जाव भवतुल्लए 2, 5 / से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ भावतुल्लए भावतुल्लए ?, गोयमा ! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालस्स पोग्गलस्स भावो तुल्ले एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगवइरित्तस्स पोग्गलस्स भावो णो तुल्ले, एवं जाव दसगुणकालए, एवं तुल्लसंखेजगुणकालए पोग्गले, एवं तुल्लअसंखेजगुणकालएवि, एवं तुल्लअणंतगुणकालएवि, जहा कालए एवं नीलए लोहियए हालिद्दे सुकिल्लए, एवं सुभिगंधे एवं दुब्भिगंधे, एवं तित्ते जाव महुरे, एवं कक्खडे जाव लुक्खे, उदइए भावे उदइयस्स भावस्स भावो तुल्ले, उदइए भावे उदइयभाववइरित्तस्स भावस्स भावो नो तुल्ले, एवं उपसमिएभावे खइएभावे खोवसमिएभावे पारिणामिएभावे, संनिवाइए भावे संनिवाइयस्स भावस्स, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ भावतुल्लए 2, 6 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ संगणतुल्लए 21, गोयमा ! परिमंडले संठाणे परिमंडलस्स संगणस्स संगणो तुल्ले परिमंडलसंठाणवइरित्तस्स संठाणश्रो नो तुल्ले, एवं व? तंसे चउरंसे थायए, समचउरंससंठाणे समचउरंसस्त संठाणस्स संठाणयो तुल्ले समचउरंसे संठाणे समचउरंससंगणवइरित्तस्स संठाणस्स संठाणयो नो तुल्ले, एवं परिमंडले एवं जाव हुंडे, से तेण?णं जाव संठाण तुल्लए 2, 7 // सूत्रं 523 // भत्तपञ्चक्खायए णं भंते ! अणगारे मुच्छिए जाव अझोववन्ने थाहारमाहारेति अहे णं वीससाए कालं करेति तो पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे