________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 13 : उद्देशकः 8-9 ] [ 473 पायोवगमणे य भत्तपञ्चक्खाणे य 11 / पायोवगमणे णं भंते ! कतिविहे पन्नते, गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-णीहारिमे य अनीहारिमे य जाव नियमं अपडिकम्मे 20 / भत्तपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पनत्ते ?, एवं तं चेव नवरं नियमं सपडिकम्मे 21 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 22 // सूत्रं 416 // // इति त्रयोदशमशतके सप्तम उद्देशकः 13-7 // // अथं त्रयोदशमशतके कर्माभिधोऽष्टमोद्देशकः // ‘पयडीणं भेयठिई बंधोवि य इंदियाणुवाएणं / केरिसय जहन्नठिइं बंधइ. उक्कोसियं वावि // 1 // ' कति णं भंते ! कम्मपगडीयो पराणत्तायो ?, गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीयो पराणत्तागो एवं बंधट्टिइउद्देसो भाणियव्यो निरवसेसो जहा पन्नवणाए 1 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ 2 // सूत्रं 417 // 13-8 // . // अथ त्रयोदशमशतके केतघटिकाभिधः नवमोद्देशकः // . रायगिहे जाव एवं वयासी-से जहानामए–केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेजा, एवामेव अणगारेवि भावियप्पा केयाघडियाकिचहत्थगएणं अप्पाणेणं उ8 वेहासं उप्पाएजा ?, गोयमा ! हता उप्पाएजा 1 / अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू केयाघडियाहत्थ-किच्चगयाई रूवाई विउवित्तए ?, गोयमा ! से जहानामए-जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे एवं जहा तइयसए पंचमुद्देसए जाव नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा विउबिति वा विउविस्संति वा 2 / से जहानामए–केइ पुरिसे हिरनपेलं गहाय गच्छेन्जा एवामेव अणगारेवि भावियप्पा हिरगणपेल-हत्थकिचगएणं अप्पा