________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 26 :: उद्देशकाः 3-7 ] [ 785 एवं जाव श्रणागारोवउत्ते, सव्वत्थवि ततियो भंगो, एवं मणुस्सवज्जं जाव वेमाणियाणं मणुस्साणं सम्बन्थ ततियचउत्था भंगा, नवरं कराहपक्खिएसु ततिश्रो भंगो, सव्वेसि नाणत्ताई ताई चेव 6 / सेवं भंते ! * तिजाव विहरइ 7 // सूत्रं 815 // बंधिसयस्स वितियो // 26-2 // // अथ षड्विंशतितमशतके तृतीयादय उद्देशकाः // __परंपरोववन्नए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगतिए पढमबितिया 1 / एवं जहेब पढमो उद्दे सत्रो तहेव परंपरोववन्नएहिवि उद्दसत्रो भाणियब्यो नेरइयाइयो तहेव नवदंडगसहियो, अट्ठाहवि कम्मप्पगडीणं जा जस्स कम्मस्स वत्तव्वया सा तस्स अहीणमतिरित्ता नेयव्वा जाव वेमाणिया श्रणागारोवउत्ता 2 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 3 // सूत्रं 816 // 26-3 // अणंतरोगाढए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! अत्यंगतिए 1 / एवं जहेव अणंतरोववन्नएहिं नवदंडगसंगहियो उद्दे सो भणियो तहेव अणंतरोगाढएहिवि अहीणमतिरित्तो भाणियब्वो नेरइयादीए जाव वेमाणिए 2 / सेवं. भंते ! २त्तिजाव विहरइ 3 // 26-4 // परंपरोगाढए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्दे सो सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 2 // 26-5 // अणंतराहारए णं भंते ! नेरतिए पावं कम्मं किं बंधी ? पुच्छा, एवं जहेव श्रणंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसं 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 2 // 26-6 // परंपराहारए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निवसेसो भाणियव्वो 1 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ 2 // 26-7 // अणंतरपजत्तए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! जहेव अणंतरोववन्न