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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 13 :: उद्देशकः 4 ] [ 455 फुसणा 8 योगाहणयाय जीवमोगाढा / अस्थि पएसनिसीयण बहुस्समे लोगसंगणे // 2 // " ___कति णं भंते ! पुढवीयो पन्नत्तायो?, गोयमा ! सत्त पुढवीयो पगणत्तायो, तजहा-रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा 1 / अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंच अणुत्तरा महतिमहालया जाव अपइट्ठाणे, ते णं गरगा छट्ठीए तमाए पुटवीए नरएहितो महंततरा चेव 1 महाविच्छिन्नतरा चेव 2 महावासतरा चेव 3 महापइरिकतरा चेव 4, णो तहा महापवेसणतरा चेव 1 नो पाइनतरा चेत्र 2 नो बाउलतरा चेव 3 अणोमाण(यण)तरा चेव 4, तेसु णं नरएसु नेरतिया छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइएहितो महाकम्मतरा चेव 1 महाकिरियतरा चेव 2 महासवतरा चेव 3 महावेयणतरा चेव 4 नो तहा अप्पकम्मतरा चेव 1 नो अप्पकिरियतरा चेव 2 नो अप्पासवतरा चेव 3 नो अप्पवेदणतरा चेव 4 अप्पड्डियतरा चेव 1 अप्पजुत्तियतरा चेव 2 नो तहा महड्डियतरा चेव 1 नो महजुइयतरा चेव 2, 2 / छट्ठीए णं तमाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पराणत्ते, ते णं नरगा अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहितो नो तहा महत्तरा चेव महाविच्छिन्नतरा चेव 4, महप्पवेसणतरा चेव पाइन्नतरा चेव 4, 3 / तेसु णं नरएसु णं नेरतिया अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहितो अप्पकम्मतरा चेव अप्पकिरियतरा चेव 4, नो तहा महाकम्मतरा चेव नो महाकिरियतरा चेव 4, महड्डियतरा चेव महाजुइयतरा चे नो तहा अप्पड्डियतरा चेव अप्पजुइयतरा चेव 4 / छट्ठीए णं तमाए पुढवीए नरगा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नरएहितो महत्तरा चेव 4, नो तहा महप्पवेसणतरा चेव 4, 5 / तेसु णं नरएसु नेरतिया पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीएहितो महाकम्मतरा चेव 4 नो तहा अप्पकम्मतरा चेव 4 अप्पड्डियतरा चेव 2 नो तहा महड्डियतरा चेव 2, 6 / पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिन्नि निरयावास-सयसहस्सा पनत्ता, एवं जहा छट्ठीए भणिया, एवं सत्तवि पुढवीयो परोप्परं भराणंति
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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