________________ 454 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / तृतीयो विभागः सयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु किं सम्मट्टिी असुरकुमारा उववज्जति मिच्छादिट्टी, एवं जहा रयणप्पभाए तिनि अालावगा भणिया तहा भाणियव्वा, एवं असंखेजवित्थडेसुवि तिन्नि गमगा 26 / एवं जाव गेवेजविमाणेसु, अणुत्तरविमाणेसुवि एवं चेव, नवरं तिसुवि श्रालावएसु मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी य न भन्नति, सेसं तं चेव 28 / से नूणं भंते ! कराहलेस्सा नील जाव सुकलेस्से भवित्ता कराहलेस्सेसु देवेसु उववज्जंति ?, हंता गोयमा ! एवं जहेव नेरइएसु पढमे उद्देसए. तहेव भाणियव्वं 21 / नीललेसाएवि जहेव नेरइयाणं जहा नीललेस्साए, एवं जाव पम्हलेस्सेसु सुकलेस्सेसु एवं चेव, नवरं लेस्सट्ठाणेसु विसुज्झमाणेसु 2 सुकलेस्सं परिणमति 2 सुकलेस्सेसु देवेसु उववज्जति, से तेण?णं जाव उववज्जति 30 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ 31 // सूत्रं 473 // // इति त्रयोदशमशतके द्वितीय उद्देशकः // 13-2 // // अथ त्रयोदशमशतके परिचारणा(अणंतरा)भिधः तृतीयोद्देशकः // नेरइया णं भंते ! अणंतराहारा ततो निव्वत्तणया एवं परियारणापदं निरवसेसं भाणियव्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ // सूत्रं 474 // // अथ त्रयोदशमशतके नारकाभिधः चतुर्थोद्देशकः // ___ "नेरइय 1 फास 2 पणिही 3 निरयंते 4 चेव लोयमझे य 5 / दिसिविदिसाण य पवहा 6 पवत्तणं अस्थिकाएहिं 7 // 1 // अत्थी पएस