________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 13 : उद्देशकः 2 ] [ 451 जाव से तेणटेणं जाव उववज्जंति 5 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ 6 // सूत्रं 472 // // इति त्रयोदशमशतके प्रथम उद्देशकः // 13-1 // // अथ त्रयोदशमशतके देवाभिध-द्वितीयोद्देशकः // कइविहा णं भंते ! देवा पराणता ?, गोयमा ! चउविहा देवा पन्नत्ता, तंजहा-भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया 1 / भवणवासी णं भंते ! देवा कतिविहा पराणत्ता ?, गोयमा ! दसविहा पराणत्ता, तंजहा-असुरकुमारा एवं भेयो जहा बितियसए देवुद्दे सए जाव अपराजिया सव्वट्ठसिद्धगा 2 / केवइया णं भंते ! असुरकुमारावास-सयसहस्सा पराणत्ता ?, गोयमा ! चोसटिं असुरकुमारावास-सयसहस्सा पराणत्ता 3 / ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा असंखेजवित्थडा ?, गोयमा ! संखेन्जवित्थडावि असंखेजवित्थडावि 4 / चोसट्टी णं भंते ! असुरकुमारावास-सयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु एगसमएणं केवतिया असुरकुमारा उववज्जति ? जाव केवतिया तेउलेसा उववज्जति ? केवतिया कराहपक्खिया उववज्जति?, एवं जहा रयणप्पभाए तहेव पुच्छा तहेव वागरणं, नवरं दोहिं वेदेहिं उववज्जंति, नपुंसगवेयगा न उववजंति सेसं तं चेव 5 / उव्वदृतगावि तहेव नवरं प्रसन्नी उव्वट्टति, योहिनाणी अोहिदंसणी य ण उव्वट्टति, सेसं तं चेव, पन्नत्तएस तहेव नवरं संखेजगा इत्थिवेदगा पराणत्ता, एवं पुरिसवेदगावि, नपुंसगवेदगा नथि 6 / कोहकसाई सिय अत्थि सिय नत्थि, जइ अत्थि जहरणेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा पराणत्ता, एवं माण माया संखेजा लोभकसाई पराणत्ता सेसं तं चेव 7 // तिसुवि गमएसु संखेज्जेसु चत्तारि लेस्सायो भाणियव्वाश्रो, एवं असंखेजवित्थडेसुवि नवरं तिसुवि गमएसु असंखेजा भाणियव्वा जाव असंखेजा