________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शक्क 21 वर्गः 4-5-6-7 ] [ 646 ___ यह भंते ! वंस-वेणु-कणक-कक्कावंस-वा(चा)रुवंस-द(उ)डा-कुडा-विमाचंडा-वेणुया-कलाणीण(णाणं) एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वकमंति एवं एत्थवि मूलादीया दस उद्देसगा जहेव सालीणं, नवरं देवो सव्वत्थवि न उववज्जति, तिन्नि लेसानो सव्वत्थवि छब्बीसं भंगा, सेसं तं चेव // चउत्थो वग्गो समत्तो // 21-4 // ग्रह भंते ! उक्खु-इक्खु-वाडिया-वीरणाइकडभ-मास सुठि-सत्तवेत्ततिमिर-सत्तपोवो)रगनलाणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वकर्मति एवं जहेव वंसवग्गो तहेव एत्थवि मूलादीया दस उद्देसगा, नवरं खंधुद्दे से देवा उववज्जंति, चत्वारि लेसायो सेसं तं चेव॥ पंचमो वग्गो समत्तो // 21-5 // अह भंते ! सेडि(दि)यभंडि(त्ति)यदभ-कोतियदब्भ-कुसदब्भ-गयोइद(दइ)ल-अंजुल-त्रासादग-रोहियंस-मु(सु)तवखीर-भुस-एरिंड-कुरुभ कुंद-करवरसुंठ-विभंगु महुव(र)यण-थुरग-सिप्पिय-सुकलितणाणं एएसि णं जे जीवा मुलत्ताए वकमंति एवं एत्थवि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसस्स // छट्टो वग्गो समत्तो // 21-6 // ___ अह भंते ! अब्भरुह-बो(वे)याण-हरितग-तंदुलेजग-तणवत्थुल-चो(पो)रग-मनार-या(पा)ई-चिल्लियालकदग-पिप्पलिय-दन्धिसोस्थिक-सायमंडुक्किमूलग-सरिसव-ग्रंबित्न साग-जिवंतगाणं एएसि णं जे जीवा मूल एवं एथवि दस उद्दे सगा जहेव वंसस्स // सत्तमो वग्गो समत्तो // 21-7 // ____ अह भंते! तुलसी-कराहद(दरा)ल-फोज्जा-अजा-चू(भू)यणा-चोरा-जीरा दमणा-मस्याइं दीवरसयपुप्फा णं एएसिणं जे जीवा मूलत्तार वक्कमंति एत्थवि दस उद्दे सगा निरवसेसं जहा वंसाणं // अट्ठमो वग्गो समत्तो // 21-8 // एव एएसु अट्ठसु वग्गेसु असीतिं उद्दे सगा भवंति // सूत्रं 610 // एकवीसतिमं सयं समत्तं // इति अष्टवर्गाः // 8 // इति एकविंशतितमं शतकम // 21 //