________________ 608 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: तृतीयो विभाग : नवरं चम्मेठ्ठदुहणमुट्ठियसमाहयणिचियगत्तकाया न भरणति सेसं तं वेव जाव निउणसिप्पोवगया तिखाए वयरामईए सरहकरणीए तिक्खेणं वइरामएणं वट्टावरए एगं महं पुढविकाइयं जतुगोलासमाणं गहाय पडिसा. हरिय 2 पडिसंखिविय 2 जाव इणामेवत्तिक तिसत्तखुत्तो उप्पीसेज्जा, तत्थ णं गोयमा ! अत्थेगतिया पुढविकाइया श्रालिद्धा अस्थगइया पुढविकाइया नो ग्रालिद्धा अत्थेगइया संघट्टि(ट्टि)या अत्थेगइया नो संघट्टि(ट्टि)या अत्थेगइया परियाविया अत्थेगइया नो परियाविया अत्थेगइया उद्दविया अत्थेगइया नो उद्दविया अत्थेगइया पिट्ठा अत्यंगतिया नो पिट्टा, पुढविकाइयस्स णं गोयमा ! एमहालिया सरीरोगाहणा पराणत्ता 1) पुढविकाइएणं भंते! अक्कते समाणे केरिसियं वेदणं पञ्चणुब्भवमाणे विहरति ?, गोयमा ! से जहानामए–केइ पुरिसे तरुणे बलवं जाव निउणसिप्पोवगए एगं पुरिसं जुन्नं जराजजरियदेहं जावदुब्बलं किलंतं जमलपाणिणा मुद्धाणसि अभिहणिज्जा, से णं गोयमा ! पुरिसे तेणं पुरिसेणं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहए समाणे केरिसियं वेदणं पञ्चणुब्भवमाणे विहरति ?, अणिटुं समणाउसो !, तस्स णं गोयमा ! पुरिसस्स वेदणाहितो पुढविकाइए अक्कंते समाणे एत्तो अणि?तरियं चेव अकंततरियं जाव अमणामतरियं चेव वेदणं पञ्चणुब्भवमाणे विहरति 2 / पाउयाए णं भंते ! संघट्टिए समाणे केरिसियं वेदणं पचणुब्भवमाणे विहरति ?, गोयमा ! जहा पुढविकाइए एवं चेव, एवं तेऊयाएवि, एवं वाऊयाएवि, एवं वणस्सइकाएवि जाव विहरति 3 / सेवं भंते ! 2 ति जाब विहरति 4 // सूत्र 653 // // इति एकोनविंशतितमशतके तृतीय उद्देशकः / / 16-3 //