________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 14 : उद्देशकः 10 ] [ 556 णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे // सूत्रं 585 // देवे णं भंते ! महड्डिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिचा पभू अलोगंसि हत्थं वा जाव उरुवा अाउंटावेत्तए वा पसारेत्तए वा ?, णो तिण? सम? 1 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ देवे णं महड्डीए जाव लोगते ठिचा णो पभू अलोगंसि हत्थं वा जाव पसारेत्तए वा ?, जीवाणं श्राहारोवचिया पोग्गला बोदिचिया पोग्गला कलेवरचिया पोग्गला पोग्गलामेव पप्प जीवाण य अजीवाण य गतिपरियाए पाहिजइ, अलोए णं नेवस्थि जीवा नेवत्थि पोग्गला से तेणटेणं जाव पसारेत्तए वा 2 // सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 3 // सूत्रं 586 / / . . इति षोडशशतके अष्टम उद्देशकः // 16-8 // // अथ षोडशशतके बलिनामक-नवमोद्देशकः / / कहिन्नं भंते ! बलिस्स वइरोयणिदस्स वइरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता ?, गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे जहेव चमरस्स जाव बायालीसं जोयणसहस्साई भोगाहित्ता पत्थणं बलिस्स वइरोयणिदस्स वइरोयणरन्नो स्यांगदे नाम उप्पायपव्वए पन्नत्ते सत्तरस एकवीसे जोयणसए एवं पमाणं जहेब तिगिच्छिकूडस्स पासायवडेंसगस्सवि तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं अट्टो तहेव नवरं रुयगिंदप्पभाई 3 सेसं तं चेव जाव बलिचंचाए रायहाणीए अन्नेसिं च जाव रुयगिदस्स णं उप्पायपव्वयस्स उत्तरेणं छक्कोडिसए तहेव जाव चत्तालीसं जोयणसहस्साई भोगाहित्ता एत्थ गणं बलिस्म वइरोयणिदस्स वइरोयणरन्नो बलिचत्रा नाम रायहाणी पन्नत्ता एगं जोयणसयसहस्सं पमाणं तहेव जाव बलिपेढस्स उववायो जाव थायरक्खा सव्वं तहेव निरवसेसं नवरं सातिरेगं सागरोवमं ठिती पन्नता सेसं तं चेव जाव बली वइरोयणिंदे बली वइरोयणरगणे 1 / सेवं भंते ! 2 जाव विहरति 2 // सूत्र 587 // 16 // . .