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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 16 :: उद्देशकः 5 ] [ 547 तरुणे बलवं जाव मेहावी निउणसिप्पोवगए एगं महं सामलिगंडियं उल्लं अजडिलं अगंठिल्लं अचिकणं अवाइद्धं सपत्तियं तिक्खेण परसुणा अंकमेजा, तए णं से णं पुरिसे नो महंताई 2 सदाइं करेति महंताई 2 दलाई अवदालेति, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहाबादराई कम्माई सिढिलीकयाई णिट्ठियाई कयाइं जाव खिप्पामेव परिविद्धत्थाई भवंति जावतियं तावतियं जाव महापजवसाणा भवंति, से जहा वा केइ पुरिसे सुकतणहत्थगं जायतेयंसि पक्खिवेजा एवं जहा छट्टसए तहा अयोकवल्लेवि जाव महापजवसाणा भवंति, से तेण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ जावतियं अनइलायए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति तं चेव जाव वासकोडाकोडीए वा नो खवयंति 6 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ 7 // सूत्रं 572 // // इति षोडशशतके चतुर्थ उद्देशकः // 16-4 // // अथ षोडशशतके गङ्गदत्ताख्य-पञ्चमोद्देशकः / / ते ण काले णं ते णं समए णं उल्लुयतीरे नाम नगरे होत्था वनश्रो, एगजंबूए चेइए वन्नयो 1 / ते णं काले णं ते णं समए णं सामी समोसढे जाव परिसा . पज्जुवासति 2 / ते णं काले णं 2 सक्के देविदे देवराया वजपाणी एवं जहेब बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमाणेगां पागो जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ 2 जाव नमंसित्ता एवं वयासी-देवे णं भंते ! महड्डिए जाव महेसबखे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू श्रागमित्तए ?, नो तिण? समढे 3 / देवे णं भंते ! महड्डिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू श्रागमित्तए?, हत्ता पभू 4 / देवे णं भंते ! महड्डिए एवं एएणं अभिलावेगां गमित्तए 2 एवं भासित्तए वा वागरित्तए वा 3 उम्मिसावेत्तए वा निमिसावेत्तए वा 4 प्राउट्टावेत्तए वा पसारेत्तए वा 5 ठगणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेइत्तए
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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