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________________ 48) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वितीयो विभागः भासा नो खलु सा अभासयो भासा 6 / पुदि किरिया अदुक्खा जहा भासा तहा भाणियव्वा, किरियावि जाव करणो णं सा दुक्खा नो खलु सा करणयो दुक्खा, सेवं वत्तव्वं सिया-किच्चं फुसं किच्चं दुक्खं कजमाणकडं दुक्खं कटु 2 पाणभूयजीवसत्ता वेदणं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया 7 // सू० 80 // अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियायो पकरेंति, तंजहा-इरियावहियं च संपराइयं च, परउत्थियवत्तव्यं णेयव्वं [ जं समयं इरियावहियं पकरेइ तं समयं संपराइयं पकरेइ, जं समयं संपराइयं पकरेइ ते समयं इरियावहियं पकरेइ, इरियावहियाए पकरणताए संपराइयं पकरेइ संपराइयपकरणयाए इरियावहियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियानों पकरेति, तंजहा-इरियावहियं च संपराइयं च।] ससमयवत्तव्वयाए णेयव्वं जाव [से कहमेयं भंते एवं ?, गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति तं चेव जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि ४-एवं खलु एगे जीवे एगसमए एक्कं किरियं पकरेइ तंजहा-] इरियावहियं वा संपराइयं वा // सू० 81 // निरयगई णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता ?, गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं उकोसेणं बारस मुहुत्ता, एवं वक्कंतीपयं भाणियब्वं निरवसेसं, सेवं भंते ! सेवं भंते ति जाव विहरइ // सू० 82 // पढमं सयं समत्तं // // इति प्रथमशतके दशम उद्देशकः // 1-10 / / // इति प्रथमं शतकं // 1 //
SR No.004363
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages468
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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