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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) सूत्रं : शतकं 12:: उ० 5 ) [427 लिय-वेउब्विय-श्राहारगतेयगाइं पडुच्च पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पराणत्ता, कम्मगं जीवं च पडुच्च जहा नेरइयाणं, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइयाणं, धम्मत्थिकाए जाव पोग्गलत्थिकाए, एए सव्वे अवन्ना, नवरं पोग्गलत्थिकाए, पंचवन्ने पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे पराणत्ते, णाणावरणिज्जे जाव अंतराइए एयाणि चउफासाणि 1 / कराहलेसा णं भंते ! कइवन्ना जाव कइफासा ? पुच्छा दवलेसं पडुच्च पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पराणत्ता, , भावलेसं पडुच्च अवन्ना 4, एवं जाव सुकलेस्सा 10 / सम्मदिट्टि 3 चम्खुद्दसणे 4 श्राभिणिबोहियणाणे जाव विभंगणाणे श्राहारसन्ना जाव परिग्गहसन्ना एयाणि अवन्नाणि 4, 11 / बोरालियसरीरे जाव तेयगसरीरे एयाणि अट्ठफासाणि कम्मगसरीरे चउफासे, मणजोगे वयजोगे य चउफासे, कायजोगे अट्ठफासे, सागारोवोगे य अणगारोवोगे य श्रवन्ना १२।सव्वदवा णं भंते ! कतिवन्ना ? पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगतिया सव्वदव्वा पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पराणत्ता, अत्थेगतिया सव्वदव्या पंचवन्ना चउफासा पराणत्ता, अत्थेगतिया सव्वदव्वा एगगंधा एगवराणा एगरसा दुफासा पन्नत्ता, अत्थेगइया सव्वदव्वा अवन्ना जाव अफासा पन्नत्ता, एवं सव्वपएसावि सव्वपजवावि, तीयद्धा अवना जाव अफासा पराणत्ता, एवं श्रणागयद्धावि, एवं सव्वद्धावि 13 // सूत्रं 450 // जीवे णं भंते ! गभं वकममाणे कतिवन्नं कतिगंध कतिरसं कतिफासं परिणामं परिणमइ ?, गोयमा ! पंचवन्नं पंचरसं दुगंधं अट्ठफासं परिणाम परिणमइ // सूत्रं 451 // कम्मश्रो णं भंते ! जीवे नो अकम्मो विभत्तिभावं परिणमइ कम्मश्रो णं जए नो अकम्मा विभत्तिभावं परिणमइ ?- हंता गोयमा ! कम्मो णं तं चेव जाव परिणमइ नो अकम्मश्रो विभत्तिभावं परिणमइ। सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति // सूत्रं 452 // // इति द्वादशमशतके पञ्चम उद्देशकः // 12-5 / /
SR No.004363
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages468
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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