________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वितीयो विभागः . // अथ एकादशमशतके कुम्भिनामक-चतुर्थोद्देशकः // कुंभिए णं भंते जीवे एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं जहा पलासुद्दे सए तहा भाणियव्वे, नवरं ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं वासपुहत्तं, सेसं तं चेव / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति // सूत्रं 412 // 11-4 // // अथ एकादशमशतके नालिकाख्य-पञ्चमोशद्देशकः // __नालिए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं कुभिउद्दसगवत्तव्वया निरवसेसं भाणियवा। सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति जाव विहरति // सूत्रं 413 // 11-5 // // अथ एकादशमशतके पद्माख्य-षष्ठोद्देशकः // पउमे णं भंते / एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं उप्पलुद्दे सगवत्तव्बया निरवसेसा भाणियव्वा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति // सूत्रं 414 // 11-6 // // अथ एकादशमशतके कर्णिकाख्य-सप्तमोद्देशकः // - कन्निए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं चेव निरवसेसं भाणियव्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते ति जाव विहरति // सूत्रं 415 / / 11-7 // // अथ एकादशमशतके. नलिनाख्याष्टमद्देशकः // ___नलिणे णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे श्रणेगजीवे ?, एवं चेव निरवसेसं जाव अणंतक्खुत्तो। सेवं भंते / सेवं भते ति जाव विहरति // सूत्रं 416 // 11-8 //