________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमझगवती) सर / शतक 10 ।-उ०१] [1 य बेइंदियस्स देसा 2 ग्रहवा एगिदियदेसा य बेइंदियाण य देसा 3 अहवा एगिदियदेसा तेइंदियस्स देसे एवं चेव तियभंगो भाणियव्वो एवं जाव श्रणिदियाणं तियभंगो 1 / जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा अहवा एगिदियपएसा य बेइंदियस्स पएसा अहवा एगिदियपदेसा य बेइंदियाण य पएसा एवं श्राइलविरहियो जाव अणिंदियाणं 10 / जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-रूविग्रजीवा य अस्वीयजीवा य, जे ख्वी अजीवा ते चउबिहा पन्नत्ता, तंजहा-खंधा जाव परमाणुपोग्गला 4, जे अस्वी अजीवा ते सत्तविहा पन्नत्ता, तंजहा-नो धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मत्थिकायस्स पएसा एवं अधम्मत्थिकायस्सवि जाव श्रागासत्थिकायस्स पएसा श्रद्धासमए 11 / विदिसासु नस्थि जीवा देसे भंगो य होइ सव्वत्थ 12 / जमा णं भंते ! दिसा किं जीवा ? जहा इंदा तहेव निरवसेसा नेरई य जहा अग्गेयी वारुणी जहा इंदा वायव्वा जहा अग्गेयी सोमा जहा इंदा ईसाणी जहा अग्गेयी, विमलाए जीवा जहा अग्गेयी, अजीवा जहा इंदा, एवं तमाएवि, नवरं अस्वी छविहा श्रद्धासमयो न भन्नति 13 // सूत्रं 314 // कति णं भंते ! सरीरा पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंच सरीरा पन्नत्ता, तंजहा-पोरालिए जाव कम्मए 1 / थोरालियसरीरे णं भंते ! कतिविह पन्नत्ते ?, एवं श्रोगाहणसवाणं निरवसेसं भाणियव्वं जाव अप्पाबहुगंति 2 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति 3 // सूत्रं 315 // दसमे सए पढमो उद्देसो समत्तो॥ ॥इति दशमशतके प्रथम उद्देशकः // 10-1 // '