________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती सत्र में शतक है # 8. 34] [3] अरसजीवी विरसजीवी जाव तुच्छजीवी उवसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी ?, हंता गोयमा ! जमाली णं श्रणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी, 7 / जति णं भंते ! जमाली अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी कम्हा णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरस-सागरोवम-ट्ठितिएसु देवकिबिसिएसु देवेसु देवकिब्विसियत्ताए उववन्ने ?, गोयमा ! जमाली णं अणगारे पायरियपडिणीए उवभायपडिणीए पायरियउवझायाणं श्रयसकारए जाव बुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे जाव बहूई वासाइं सामनपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई श्रणसणाए छेदेति 2 तस्स ठाणस्स श्रणालोझ्यपडिक्कते कालमासे कालं किचा लंतए कप्पे जाव उबवन्ने 8 ॥सूत्रं 386 // जमाली णं भंते ! देवे तायो देवलोयानो बाउक्खएगां जाव कहिं उववजइ?, गोयमा ! चत्तारिपंच तिरिक्खजोणिय मणुस्स-देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तो पच्छा सिज्झिहिति जाव अंतं काहेति / सेवं भंते 2 ति जाव विहरति // सूत्रं 310 // जमाली-समत्तो // // इति नवमशतके त्रयस्त्रिंशत्तम उद्देशकः // 9-33 // // अथ नवमशतके पुरुषाख्य-चतस्त्रिंशत्तमोहद्देशकः // तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी-पुरिसे णं भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसं हणइ नोपुरिसं हणइ ?, गोयमा ! पुरिसंपि हणइ नोपुरिसेवि हणति 1 / से केण?णं भंते ! एवं बुबइ पुरिसंपि हणइ नोपुरिसेवि हणइ ?, गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि से णं एगं पुरिसं हणमाणे अणेगजीवा हणइ, से तेण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ पुरिसंपि हणइ नोपुरिसेवि हणति 2 / पुरिसे णं भंते ! श्रासं हणमागणे किं श्रासं हणइ नोग्रासेवि हणइ ?,