________________ 258] :- [-श्रीमदागमसुधासिन्धुः द्वितीयो विभागः तं पडिग्गाहेजा, तहेव जाव तं नो अप्पणा पडिभुजेजा नो अन्नेसि दावए, सेसं तं चेव जाव परिवेयव्वे सिया 4 / एवं जाव दसहि पडिग्गहेहिं, एवं जहा पडिग्गहवत्तव्वया भणिया एवं गोच्छग-रयहरण-चोलपट्टगकंबल-लट्टी-संथारगवत्तव्वया य भाणियवा जाव दसहिं संथारएहिं उपनिमंतेजा जाव परिहावेयव्वे सिया 5 // सूत्रं 333 // निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पवितुणं अन्नयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति-इहेव ताव अहं एयरस ठाणस्स पालोएमि पडिकमामि निंदामि गरिहामि विउट्टामि विसोहेमि अकरणयाए अब्भुट्ठोमि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवजामि, तो पच्छा थेराणं अंतियं पालोएस्सामि जाव तबोकम्मं पडिवजिस्सामि, से य संपट्ठिए संपत्ते थेरा य पुव्वामेव अमुहा सिया, से णं भंते ! किं धाराहए विराहए ?, गोयमा ! श्राराहए नो विराहए 1 / से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुवामेव अमुहे सिया से णं भंते / किं पाराहए विराहए ?, गोयमा ! पाराहए नो विराहए 2 / से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुवामेव थेरा य कालं करेजा से णं भंते ! किं श्राराहए विराहए ?, गोयमा ! अाराहए नो विराहर 3 / से य संपट्टिए असंपत्ते अप्पणा य पुत्वामेव कालं करेजा से णं भंते ! किं धाराहए विराहए ?, गोयमा! श्राराहए नो विराहए 4 / से य संपट्ठिए संपत्ते थेरा य अमुहा सिया से णं भंते ! किं धाराहए विराहए ?, गोयमा ! श्राराहए नो विराहए 5 / से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य, एवं संपत्तेणवि चत्तारि पालावगा भाणियव्वा जहेव असंपत्तेणं 6 / निग्गंथेण य बहिया वियारभूमि विहारभूमि वा निवखंतेणं अन्नयरे अकिचट्ठाणे पडिसेविए तस्स णं एवं भवति-इहेव ताव अहं एवं एत्थवि एते चेव अट्ठ पालावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए 7 / निरगंथेण य गामाणुगामं दूइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिचट्ठाणे पडिसेविए तस्स णं