________________ { श्रीबदामणसुवासिन्धुः ।द्वितीयो विभागः अपचक्खाए भवइ से णं भंते ! पच्छा पचाइक्खमाणे एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं भंगसयं भणियं तहा मुसावायस्सवि भाणियब्वं 14 / एवं अदिनादाणस्सवि, एवं थूलगस्स मेहुणस्सवि थूलगस्स परिग्गहस्सवि जाव अहवा करेंतं नाणुजाणइ कायसा 15 / एए खलु एरिसगा समणोवासगा भवंति, नो खलु एरिसगा भाजीवियोवासगा भवंति 16 // सूत्रं 326 // श्राजीवियसमयस्स णं अयम? पराणत्ते अक्खीणपडिभोइणो सव्वे सत्ता से हंता छेत्ता भेत्ता लुपित्ता विलुपित्ता उद्दवइत्ता श्राहारमाहारेंति, तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति, तंजहा-ताले 1 तालपलंबे 2 उविहे 2 संविहे 4 अवविहे 5 उदए 6 नामु(म)दए७ णमु(म्मु)दए 8 अणुवाल(लु)ए 1 संखवालए 10 अयंवुले 11 कायरए 12, 1 / इच्चेते दुवालसमाजीवियोवासगा अरिहंतदेवतागा अम्मापिउसुस्सूसगा पंचफलपडिक्कता, तंजहा-उंबरेहि वडेहिं बोरेहिं सतरेहिं पिलंखुहिं 2 / पलंडुल्हसण-कंदमूलविवजगा अणिलछिएहिं अणकभिन्नेहिं गोणेहिं तसपाणविवजिएहिं चित्तेहिं वित्ति कप्पेमाणे विहरंति 3 / एएवि ताव एवं इच्छंति, किमंग पुण जे इमे समणोवासगा भवंति ? जेसिं नो कप्पंति इमाइं पन्नरस कम्मादाणाई सयं करेत्तए वा कारवेत्तए वा करेंतं वा अन्न न समणुजाणेत्तए, तंजहा-इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिज्जे लक्खवाणिज्जे केसवाणिज्जे रसवाणिज्जे विसवाणिज्जे जंतपीलणकम्मे निल्लंकणकम्मे दवग्गिदावणया सर-दहतलायपरिसोसणया असतीपोसणया, इच्चे ते समरणोवासगा सुका सुक्काभिजातीया भविया भवित्ता कालमासे कालं किचा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति 4 // सूत्रं 330 // कतिविहा णं भंते ! (देवा) देवलोगा पराणत्ता ?, गोयमा ! चउबिहा देवलोगा पराणत्ता, तंजहांभवणवासि-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया, सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरति // सूत्रं 331 // अट्ठमसयस्स पंचमो उद्देसयो॥ // इति अष्टमशतके पञ्चम उद्देशकः // 8-6 //