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________________ / श्रीमदामितवासिन्धु वितीयो बिमान... कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उजालेइ से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव, तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निवावेइ से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव 1 / से केण?णं भंते ! एवं बुचइ-तत्थ णं जे से पुरिसे जाव अप्पवेयणतराए चेव ?, कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उजालेइ से णं पुरिसे बहुतरागं पुढविकायं समारंभति बहुतरागं श्राउकायं समारंभति अप्पतरायं तेऊकायं समारंभति बहुतरागं वाऊकायं समारंभति बहुतरायं वणस्सइकायं समारंभति बहुतरागं तसकायं समारंभति, तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेति से णं पुरिसे अप्पतरायं पुढविकायं समारंभइ अप्पतरागं श्राउकायं समारंभइ बहुतरागं तेउकायं समारंभति अप्पतरागं वाउकायं समारंभइ अप्पतरागं वणस्सइकायं समारंभइ अप्पतरागं तसकार्य समारंभति से तेणटेणं कालोदाई ! जाव अप्पवेयणतराए चेव 2 // सूत्रं 307 // अत्थि णं भंते ! अचित्तावि पोग्गला श्रोभासंति उज्जोति तवेंति पभासेंति ?, हंता अस्थि ? / कयरे णं भंते ! अचित्तावि पोग्गला श्रोभासंति जाव पभासेंति ?, कालोदाई ! कुद्धस्स अणगारस्स तेयलेस्सा निसट्टा समाणी दूरं गंता दूरं निपतइ देसं गंता देसं निपतइ जहिं जहिं च णं सा निपतइ तहिं तहिं च णं ते अचित्तावि पोग्गला श्रोभासंति जाव पभासंति, एएणं कालोदाई ! ते अचित्तावि पोग्गला योभासंति जाव पभासेंति 1 / तए णं से कालोदाई श्रणगारे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति 2 बहूहिं चउत्थछट्टट्ठम जाव अप्पाणं भावेमाणे जहा पढमसए कालासवेसियपुत्ते जावं सव्वदुक्खप्पहीणे 1 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति // सूत्रं 308 // सत्तम सयं समत्तं // ... . // इति सममशतके वशम उद्देशकः // 7-10 // .. // इति सप्तमं शतकम् // 7 //
SR No.004363
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages468
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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