________________ [ श्रीमदामिसुभासिन्थाः द्वितीयो विभाग णो तं समयं निजरेंति जै समयं निजरंति नो तं समयं वेदेति अन्नम्मि समए वेदेति अनम्मि समर निजरेंति श्रन्ने से वेदणासमए अन्ने से निजरासमए, से तेण?णं जाव न से वेदणासमए, एवं जाव वेमाणियाणं 14 // सूत्रं 276 // नेरइया णं भंते ! कि सामया असासया ?, गोपमा! सिय सासया सिय असासया 1 / से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ नेरझ्या सिय साप्सया सिप असासया ?, गोयमा ! अयोच्छित्तिणयट्टयाए सामया वोच्छित्तिणयट्टयाए असासया, से तेणटेणं जाव सिप सासया सिय श्रसासया 2 / एवं जार वेमाणिया जाब सिय असासया 3 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाब विरहति 4 // सूत्रं 280 // // इति सप्तमशतके तृतीय उद्देशकः // 7-3 // // अथ सप्तमशतके जीवाख्य-चतुर्थोद्देशकः // ... रायगिहे नगरे जाव एवं वदासी-कतिविहा. णं भंते ! संसारसमावनगा जीवा पन्नत्ता ? गोयमा ! विहा संसारसमावन्नगा जीवा पनत्ता, तंनहा-पुढविकाइया एवं जहा जीवाभिगमे जाव सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाब विहरति / (जीवा छविह पुवी जीवाण ठिती भवहिती काए / निल्लेवण अणगारे किरिया सम्मत्तमिच्छता // 1 // ) (जोणिसंगहलेसा दिट्ठी णाणे य जोग उपभोगे। अवायठिइसमुग्घाय-चवणजाई-कुलविहीश्रो // 1 // सूत्रं 281 // . . // इति सप्तमशतके चतुर्थ उद्देशकः // 7-4 // // अथ सप्तमशतके पक्षिनामक-पञ्चमोद्देशकः // ---- रायगिहे जाव एवं वदासी-सहयर-पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणियाणं भंते ! कतिविहे गं जोणीसंगहे पाणते ?, गोयमा ! तिविहे जोणीसंगहे