________________ श्रीमद्व्याख्याप्तज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) स्त्र :: शतकं 5 : उ० 7 ] [166 दवट्ठाणाउयस्स खेत्तढाणाउयस्स भोगाहणट्ठाणाउयस्स भावट्ठाणाउयस्स कयरे 2 जाब विसेसाहिया वा ?, गोयमा ! सव्वत्थोवे खेत्तट्ठाणाउए योगाहणट्ठाणाउए असंखेनगुणे दबट्टाणाउए असंखेजगुणे भावट्ठाणाउए असंखेजगुणे-खेत्तोगाहणदव्वे भावट्ठाणाउयं च अप्पबहुँ / खेत्ते सव्वत्थोवे से सा गणा असंखेजा // 1 // सूत्रं 218 // नेरइया णं भंते ! किं सारंभा सपरिग्गहा उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा ?, गोयमा / नेरइया सारंभा सपरिग्गहा नो अणारंभा णो अपरिग्गहा 1 / से केण?णं जाव अारिग्गहा ?, गोयमा ! नेरझ्या णं पुढविकायं समारंभंति जाव तसकयं समारंभंति सरीरा परिग्गहिया भवंति कम्मा परिग्गहिया भवंति सचित्ताचित्तमीसयाई दव्याइं परिग्गहियाई भवंति, से तेणटेणं तं चैव 2 / असुरकुमारा णं भंते ! किं सारंभा 4 ? पुच्छा, गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा नो अणारंमा अपरिग्गहा 3 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-असुरकुमारा जाव अपरिग्गहा ?, गोयमा ! असुरकुमारा णं पुढविकायं समारंभंति जाव तसकायं समारंभंति सरीरा परिग्गहिया भवंति कम्मा परिग्गहिया भवंति भवणा परिग्गहिया भवंति देवा देवीयो मणुस्सा मणुस्सीयो तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीयो परिग्गहियायो भवंति श्रासणसयणभंडमत्तोंवगरणा परिग्गहिया भवंति सच्चित्ताचित्तमीसयाई दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति से तेणटेणं तहेव एवं जाव थणियकुमारा 4 / एगिदिया जहा नेरइया 5 / बेइंदिया णं भंते / किं सारंभा सपरिग्गहा ? तं चेव जाव सरीरा परिग्गहिया भवंति बाहिरिया भंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति सचित्ताचित्तमीसयाइं जाव भवंति एवं जाव चउरिंदिया 6 / पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! तं चेव जाव कम्मा परिग्गहिया भवंति टंका कूडा सेला सिहरी पभारा परिग्गहिया भवंति, जलथल बिल गुहालेणा परिग्गहिया भवंति, उज्झर-निज्झर-चिल्लल-पल्लल-वप्पिणा परिग्गहिया