________________ - [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वितीयो विभागः याहिं पुढे, एवं धणुपुढे पंचहि किरियाहिं, जीवा पंचहिं, राहारू पंचहिं, उसू पंचहिं सरे पत्तणे फले राहारू पंचहिं / / सूत्रं 206 // अहे णं से उसु अप्पणो गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे वीससाए पचोवयमाणे जाई तत्थ पाणाइं जाव जीवियायो ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कति. किरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से उसु अप्पणो गुरुययाए जाप ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहि किरियाहिं पुढे, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए तेवि जीवा चरहिं किरियाहि, धणूपुढे चउहिं, जीवा चरहिं, राहारू चउहिं, उसू पंचहिं, सरे पत्तणे फले राहारू पंचहिं, जेवि य से जीवा अहे पचोवयमाणस्स उवग्गहे चिट्ठांति तेवि य णं जीवा कातियाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा // सूत्रं 207 // अराणउत्थिया णं भंते ! एवमातिखंति जाव परुति से जहानामएजुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेराहेजा चक्कस्स वा नाभी अरगा उत्तासिया एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइन्ने मणुयलोए मणुस्सेहिं, से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा ! जगणं ते अरणउत्थिया जाव मणुस्सेहि जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमातिक्खामि जाव एवामेव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइराणे निरयलोए नेरइएहिं // सूत्रं 208 // नेरझ्या णं भंते ! कि एगत्तं पभू विउवित्तए, पुहुत्तं पभू विउवित्तए ?, जहा जीवाभिगमे घालावगो तहा नेयव्यो जाव दुरहियासे // सूत्रं 201 // श्राहाकम्मं णं अणवज्जेत्ति मणं पहारेत्ता भवति, से गां तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिबकंते कालं करेइ नत्थि तस्स श्राराहणा, से णं तस्स ठाणस्स बालोइयपडिक्कते कालं करेइ अस्थि तस्स बाराहणा एएणं गमेणं नेयव्वं-कीयगडं ठवियगं रइयगं कतारमत्तं दुभिक्खभत्तं वदलियाभत्तं गिलाणभत्तं सेजायरपिंडं रायपिंडं 1 / याहाकम्मं णं श्रणवज्जेत्ति बहुजणमज्झे भासित्ता सयमेव परिभुजित्ता भवति से णं