________________ 146 ] ( श्रीमदागमसुधासिन्धुः द्वितीयो विमागः वीरिय-सजोगस-इव्वयाए चलाई उवकरणाई भवंति, चलोवगरणट्ठयाए य णं केवली असि समयंसि जेसु यागासपदेसेसु हत्यं वा जाव चिट्ठति णो णं पभू केवली सेयकालंसिवि तेसु चेव जाव चिट्टित्तए, से तेणटेणं जाव वुच्चइ-केवली णं अस्सिं समयंसि जाव चिट्ठित्तए 2 // सूत्रं 111 // पभू णं भंते ! चोदसपुब्बी घडायो घडसहस्सं पडायो पडसहस्सं कडायो 2 रहायो 2 छत्तायो छत्तसहस्सं दंडात्रो ढंडसहस्सं अभिनिव्वत्ता उवदंसेत्तए ?, हंता पभू 1 / से केण?णं पभू चोदसपुव्धी जाव उवदंसेत्तए ?, गोयमा ! चउद्दसपुट्विस्स णं अणंताई दवाई उकरियाभेएणं भिजमाणाई लद्धाई पत्ताई अभिसमन्नागयाइं भवंति, से तेण?णं जाव उवदंसित्तए / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ ति बेमि 2 // सूत्रं 200 // // इति पञ्चमशतके चतुर्थ उद्देशकः // 5-4 // // अथ पञ्चमशतके छद्मस्थाख्य-पंचमोद्देशकः // ___ छउमत्थे णं भंते ! मणुसे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं जहा पढमसए चउत्थुद्दे से घालावगा तहा नेयव्वा जाव अलमत्थुत्ति वत्तव्वं सिया // सूत्रं 201 // अन्नउस्थिया णं भंते ! एवमातिखंति जाव परुति सव्वे पाणा सव्वे भूया सब्वे जीवा सव्वे सत्ता एवंभूयं वेदणं वेदेति से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा ! जगणं ते अन्नउत्थिया एवमातिक्खंति जाव वेदेति जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा / ऐवमातिखामि जाव पुरूवेमि प्रत्थेगड़या पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदणं वेदेति प्रत्येगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदणं वेदेति 1 / से केण?णं अत्थेगतिया ? तं चेव उच्चारेयव्वं, गोयमा ! जे णं पाणा भूया जीवा सत्ता जहा कडा कम्मा तहा