________________ 128] ... [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: द्वितीयो विभागः // अथ तृतीयशतके इन्द्रियाख्य-नवमोद्देशकः // ___ रायगिहे जाव एवं वदासी-कतिविहे णं भंते ! ते इंदियविसए पराणते ?, गोयमा ! पंचविहे इंदियविसए पराणत्ते, तंजहा-सोतिदियविसए जीवाभिगमे जोतिसियउद्देसो नेयव्यो अपरिसेसो // सूत्रं 170 // // इति तृतीयशतके नवम उद्देशकः // 3-9 // // अथ तृतीयशतके परिषदभिध-दशमोद्दशकाः // ... रायगिहे जाव एवं वयासी-चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररन्नो कति परिसायो पण्णत्तायो ?, गोयमा ! तो परिसायो पराणत्तायो, तंजहा-समिता चंडा जाया, एवं जहाणुपुब्बीए जावऽच्चुत्रो कप्पो, सेवं भंते 2 ति जाव विहरति // सूत्रं 171 // तइयसए दसमोद सो ततियं सयं समत्तं // // इति तृतीयशतके दशम उद्देशकः // 3-10 // // इति तृतीयं शतकम् // 3 // // अथ चतुर्थशतके विमानाख्याः चत्वारः उद्देशकाः // चत्तारि विमाणेहिं चत्तारि य होंति रायहाणीहिं / नेरइए लेस्साहि य दस उद्देसा चउत्थसए // 1 // रायगिहे नगरे जाव एवं वयासीईसाणस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरगणो कति लोगपाला परणता ?, गोयमा ! चत्तारि लोगपाला पराणत्ता, तंजहा-सोमे जमे वेसमणे वरुणे 1 / एएसि णं भंते ! लोगपालाणं कति विमाणा पराणत्ता ?, गोयमा ! चत्तारि विमाणा पराणत्ता, तंजहा-सुमणे सव्वयोभद्दे वग्गू सुवग्गू 2 / कहि णं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरनो सोमस्स महारनो सुमणे