________________ भीमद्व्याख्याज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) र शवकं 3 : 01 [ 113 राणा सेयकाले अकम वाविः भवति, से तेण?णं मंडियपुत्ता ! एवं वुचतिजावं च णं से जीवे सया समियं नो एयति जाव घेते अंतकिरिया भवति 6 // सूत्रं 153 // पमत्तसंजय णं भंते ! पमत्तसंजमे वट्टमाणस्स सव्वावि यणं पमत्तछा कालयो केवचिरं होइ ?, मंडियपुत्ता ! एगजीवं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उकासेणं देसूणा पुन्चकोडी, णाणाजीवे पडुच्च सव्वद्धा 1 / अप्पमत्तसंजयस्स णं भंते ! अप्पमत्तसंजमे वट्टमाणस्स सव्वावि य णं अप्पमत्तद्धा कालयो केवचिरं होइ ?, मंडियपुत्ता ! एगजीवं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी देसूणा, णाणाजीवे पडुच्च सव्वद्धं, सेवं भंते ! 2 ति भयवं मंडियपुत्ते अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ 2 संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ 2 ॥सू० 154 // भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ 2 ता एवं वयासी-कम्हा णं भंते ! लवणसमुद्दे चाउद्दसट्टमुद्दिट्ट-पुन्नमासिणीसु अतिरेयं वहति वा हायति वा ?, जहा जीवाभिगमे लवणसमुद्दवत्तव्वया नेयवा जाव लोयट्टिती, जगणं लवणसमुद्दे जंबूद्दीवं 2 णो उप्पीलेति णो चेव णं एगोदगं करेइ लोयट्टिई लोयाणुभावे 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरति 2 // किरिया समत्ता // सूत्रं 155 // ततियस्स सयस्स तइयो // // इति तृतीयशतके तृतीय उद्देशक // 3-3 // // अथ तृतीयशतके ज्ञानाभिध-चतुर्थोद्देशकः // श्रणगारे णं भंते ! भावियप्पा देवं विउव्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ ? गोयमा ! अत्थेगइए देवं पासइ णो जाणं पासइ 1 अत्थेगइए जाणं पासइ नो देवं पासइ 2 अत्थेगइए देवपि पासइ जाणंपि पासइ 3 अत्थेगइए नो देवं पासइ नो जाणं