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________________ बीमत्स्थानाङ्गस्त्रम् श्रुतम्बंधः 2 अध्ययनं 3] [ 311 तंजहा-अट्ठी अट्ठिमिजा केसंमंसुरोमनहे (नहरोमे) 1 / तयो माउयंगा पन्नत्ता तंजहा-मंसे सोणिते मत्थुलिंगे 2 ॥सू० 201 // तिहिं ठाणाहिं समणे णिग्गगंथे महानिजरे महापजवसाणे भवति, तंजहा-कया णं यह अप्पं वा बहुयं वा सुयं श्रहिजिस्सामि ? कया णमहमेकलविहारपडिमं उवसंजिता णं विहरिस्सामि ? कया णमहमपच्छिममारणंतितसंलेहणाभूसणाझूसिते भत्ताणपडियाइक्खिते पायोवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि,? एवं स मणसा स वयसा स कायसा पहारेमाणे (पागडेमाणे) निग्गंथे महानिजरे महापजवसाणे भवति 1 / तिहिं ठाणेहिं समणोवासते महानिजरे महापजवसाणे भवति, तंजहा-कया णमहमप्पं वा बहुयं वा परिग्गह परिचइस्सामि ? 1 कया णं अहं मुडे भवित्ता श्रागारातो अणगारितं पव्वइस्सामि ? 2 कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणाझूमणाझसिते भत्तपाणपडियातिक्खते पायोवगते कालं श्रणवकंखमाणे विहरिस्सामि ? 3, एवं स मणसा स वयसा स कायमा पागडेमाणे [जागरमाणे] समणोवासते महानिजरे महापजवसाणे भवति 2 ॥सू० 210 // तिविह पोग्गलपडि. घाते पन्नत्ते तंजहा- परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलं पप्प पडिहन्निज्जा लुक्खत्ताते वा पडिहरिणजा लोगते वा पडिहनिजा।सू. 211 // तिविह चक्खू पन्नत्ता तंजहा-एगचवखु बिचवखु तिच्वखु , उमाथे णं मणुस्से एगचक्यू , देवे विचक्खू तहारूवे समणे वा माहणे वा उप्पन्ननाणदसणधरे से णं तिक्खूत्ति वत्तव्वं मिता / सू० 212 // निविधे अभिसमागमे पन्नत्ते तंजहा--उड्ढे अहं तिरियं, जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अति. सेसे नाणदसणे समुप्पजति से णं तप्पढमताते उडमभिसमेति ततो तिरित ततो पच्छा अहे, अहोलोगे णं दुरभिगमे पन्नते समणाउमो !॥सू०२१३॥ तिविधा इड्डी पन्नत्ता तंजहा-देविड्डी राइटी गणिड्डी 1 / देविट्ठी तिविहा पन्नत्ता तंजहा-विमाणिड्डी विगुवणिष्टी परियारणिड्डी 2 / अहवा देविड्डी
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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