SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभाग श्रागासपइट्ठिए वाते वातपतिट्ठिए उदही उदहिपतिट्ठिया पुढवी, तयो दिसायो पन्नत्तायो तंजहा-उद्धा पहा तिरिया 1, तिहि दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति, उड्डाए अहाते तिरियाते 2, एवं अागती 3 वक्कंती 4 पाहारे 5 वुट्ठी 6 णिवुड्डी 7 गतिपरियाते 8 समुग्घाते 1 कालसंजोगे 10 दंसणाभिगमे 11, णाणाभिगमे 12, जीवाभिगमे 13, तिहिं दिसाहिं जीवागां अजीवाभिगमे पत्रने तंजहा-उड्डाते अहाते तिरियाने 14, एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, एवं मणुस्माणवि सू० 163 / / तिविहा तसा पन्नत्ता तंजहा-तेउकाइया वाउकाइया उराला तसा पाणा 1 / तिविधा थावरा पन्नत्ता तंजहा-पुटविकाझ्या ग्राउकाइया वणस्सइकाइया 2 ॥सू० 164 // ततो यच्छेजा पन्नत्ता तंजहा-समये पदसे परमाणू 1 / एवमभेजा 2 / घउमा 3 / अगिज्मा .4 ग्राड्डा 5 / अमझा 6 / अपएसा 7 / ततो थविभलिमा पन्नता तजहा- ममते पएसे परमाणू 8 ॥सू० 165 // अजोति समणे भगवं महावीरे गोर मादी समणे णिग्गंथे ग्रामंतेत्ता एवं क्यासी-किं. भया पागा ? समणाउमो ?, गोयमाती समणा णिग्गंथा समणं भगवं महातीरं उपसंकमति उपसंकमित्ता वंदंति नममंति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-णो खलु वयं देवाणुप्पिया ! एएमळं जाणामो वा पासामो वा, तं जदि णं देवाणुपिया एयमन्ट जो गिलायंति परिकहित्तते तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं यतिए एयमष्ठं जाणित्तए, अजोत्ति समणे भगवं महावीरे गोयमाती समणे निग्गथे यामतेत्ता एवं वयासी-दुक्खभय पाणा समणाउमो! / / से णं भंते। दुक्खे केण कडे ? जीवेणं कडे पमादेण 2 / से णं भंते ! दुक्खे कहं वेइजति ? अप्पमाएणं 3 ॥सू. 166 // अन्नउत्थिता णं भंते ! एवं धातिवखंति एवं भासंति एवं पनवेति एवं परुवंति कहन्नं समणाणं मिग्गंधाणं किरिया कन्जति ? तत्य जा मा कडा कजइ नो तं पुच्छति, तत्व जा सा कडा नो कनति, नो तं पुच्छति, तत्थ जा सा अकड़ा नो
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy