________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् / अध्ययनं 10 ] [ 1 विमलवाहणे णं कुलकरे णव धणुसताई उद्धं उच्चत्तेणं हुत्था // सू० 616 // उसभेणं परहा कोसलिते णं इमीसे श्रोसप्पिणीए णवहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं विईक्कंताहिं तित्थे पवत्तिते // सू० 617 // घणदंतलठ्ठदंतगूढदंत-सुद्धदंतदीवाणं दीवा णवणवजोयणसताई अायामविक्खंभेणं पण्णत्ता // सू० 618 // सुक्कस्स णं महागहस्स णव वीहीरो पन्नत्तायो तंजहाहयवीही गतवीही णागवीही वसहवीही गोवीही उरगवीही श्रयवीही मितवीही वेसाणरवीही // सू० 611 // नवविधे नोकसायवेयणिज्जे कम्मे पन्नत्ते, तंजहा-इत्थिवेते पुरिसवेते णपुंसगवते हासे रत्ती अरइ भये सोगे दुगुंछे // सू० 700 // चरिंदियाणं णव जाइकुलकोडी-जोणिपमुहसयसहस्सा पराणत्ता, भुयगपरिसप्प-थलयरपंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं नवजाइकुलकोडि-जोणिपमुह-सयसहस्सा परणत्ता // सू०७०१॥ जीवा णं णवट्ठाणनिवनिते पोग्गले पावकम्मत्ताते चिणिंसु वा (3) पुढविकाइयनिवत्तिते जाव पंचिंदितनिवत्तिते, एवं चिणउवचिण जाव णिजरा चेव // सू० 702 // णव पएसिता खंधा अणंता पराणत्ता, नवपएसोगाढा पोग्गला अणंता पराणत्ता जाव णवगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पराणत्ता ।।सू० 703 // नवमं ठाणं नवमझयणं समत्तं // // इति नवस्थानकास्यं नवममध्ययनम् // 9 // // अथ दशमस्थानकाख्यं दशममध्ययनम् // दसविधा लोगट्टिती पन्नत्ता, तंजहा-जगणं जीवा उद्दाइत्ता (2) तत्थेव (2) भुजो (2) पञ्चायंति एवं एगा लोगट्टिती पराणत्ता 1 / जगणं जीवाणं सता समियं पावे कम्मे कजति एवंप्पेगा लोगट्टिती पराणत्ता 2 / जराणं जीवा सया समितं मोहणिज्जे पावे कम्मे कजति एवंप्पेगा लोगट्टिती पराणत्ता 3 / ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं जीवा अजीवा