________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 7 ] [407 चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा। मणियंगा त अणियणा सत्तमगा कप्परुक्खा य // 1 // सू० 556 // सत्तविधा दंडनीती पन्नत्ता, तंजहा-हक्कारे मकारे धिक्कारे परिभासे मंडलबंधे चारते छविच्छेदे // सू० 557 // एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स णं सत्त एगिदियरतणा पन्नत्ता, तंजहा-चकरयणे छत्तरयणे चम्मरयणे दंडरयणे असिरयणे मणिरयणे काकणिरयणे 1 / एगमेग्गस्स णं रनो चाउरंतचकवट्टिस्स सत्त पंचिंदियरतणा पत्नत्ता, तंजहासंणावतीरयणे माहावतिरयणे वड्डतिरयणे पुरोहितरयणे इत्थिरयणे श्रासरयणे हत्थिरयणे 2 // सू० 558 // सत्तहिं ठाणेहिं योगाढं दुस्समं जाणेज्जा, तंजहा-अकाले वरिसइ काले ण वरिसइ असाधू पुज्जति साधू ण पुज्जति गुरुहिं जणो मिच्छं पडिवन्नो मरोदुहता वतिदुहता 1 / सत्तहिं ठाणेहिं योगाढं सुसमं जाणेजा, तंजहा-अकाले न वरिसइ, काले वरिसइ, असाधू ण पुज्जंति, साधू पुज्जंति, गुरुहिं जणो सम्म पडिवन्नो, मणोसुहता वतिसुहता 2 // सू० 551 // सत्तविहा संसारसमाबनगा जीवा पन्नत्ता, तंजहा-नेरतिता तिरिक्खजोणिता तिरिक्खजोणिणितो मणुस्सा मणुस्सीयो देवा. देवीयो // सू० 560 // सत्तविधे पाउभेदे पन्नत्ते, तंजहाअज्झवसानिमित्ते थाहारे वेयणा पराघाते / फासे प्राणापाणू सत्तविधं भिजए बाउं // 1 // // सू० 561 // सत्तविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया श्राउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकातिता अकातिता, अहवा सत्तविहा सवजीवा पन्नत्ता, तंनहाकराहलेसा जाव सुक्कलेसा अलेसा // सू० 562 // बंभदत्ते णं राया चाउरं. तचक्कवट्टी सत्त धणूई उट्ठ उच्चत्तेणं सत्त य वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा यधे सत्तमाए पुढवीए अप्पतिवाणे णरए णेरतितत्ताए उववन्ने ॥सू. 563 // मल्ली णं अरहा अप्पसत्तमे मुंडे भवित्तायगारातो अण. गारिय पव्वइए, तंजहा-मल्ली विदेहरायवरकन्नगा 1 पडिबुद्धी इक्खागराया 2