________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 263 दोराहं भवपञ्चइए पन्नत्ते तंजहा-देवाणां चेव नेरइयागां चेव 14, दोगहं खयोवसमिए पन्नते तंजहा-मणुस्साणां चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणां चेव 15, मणपजवणाणे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-उज्जुमति चेव विउलमति चेव 16, परोक्खे णाणे दुविह पन्न, तंजहा-याभिणिवोहियणाणे व सुयनाणे चेव१७, श्राभिणिबोहियणाणे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-सुयनिस्सिए चेव असुयनिस्सिए चेव 18, सुयनिस्सिए दुविहे पनत्ते तंजहा-यत्थोग्गहे चेव पंजणोग्गहे चेव 11, असुयनिस्सितेऽवि एमेव 20, सुयनागो दुविहे पन्नत्ते जहा–अंगपविठे चेव यंगवाहिरे चेव 21, अंगवाहिरे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-यावस्सए चेव श्रावस्सयवइरित्ते चेव 22, श्रावस्सयव तिरित्ते दुविहे पन्नत्ते तंजहा–कालिए चेव उक्वालिए चेव 23 ॥सू० 71 // दुविहे धम्मे पन्नते तंजहा-सुक्धन्मे चेव चरित्तधम्मे चेव, सुयधम्मे दुविहे पनते तंजहा. सुत्त नुय धम्मे चेव, अत्थसुयधम्मे चेव, चरित्तधम्मे दुविहे पनत्ते तंजहा-यगारचरित्तधम्मे चेव अणगारचरित्तधम्मे चेव, दुविहे संजमे पन्नते जहा-सरागसंजमे चेव वीतरागसंजमे चेव, सरागसंजमे दुविहे पन्नत्ते तंजहा- सुहुमसंपरायसरागमंजमे चेव बादरसंपरायमरागतंजमे चेव, सुहुममंपरायसरागसंजमे दुविहे पन्नते, तंजहा-पढमसमयसुहुमसंपरार सरागसंजमे चेव अपढमसमयसु०, अथवा चरमसमयसु० अचरिमसमयसु०, ग्रहवा सुहुमसंपरायसरागसंजमे दुविहे पत्नत्ते तंजहा-संकिलेसमाणए चेव विसुज्ममाणए चेव, बादरसंपराय. सरागसंजमे दुविहे पन्नते तंजहा-पढमसमयबादर० अपढमसमयबादरसं०, ग्रहवा चरिमसमय० अचरिमसमय०, ग्रहवा बायरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-पडियाति चेव अपडिवाति चेव, वीयरागसंजमे दुविहे पन्नत्ते तंजहा--उवसंतकमायवीयरागसंजमे चेव खीणकसायवीयरागसंजमे चैव, उव. संतकसायवीयरागसंजमे दुविहे पन्नत्ते तं जहा--पढमसमयउवसंतकसायवीतरागसंजमे चेव यादमसमयउब०, यहवा चरिमसमयउव. अचरिमसमयउव०,