________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 4 ] [ 353 कुलसंपराणेण त जयसंपन्नेणे त 4, 26 / एवं बलसंपन्नेण त स्वसंपन्नेण त 4, 30 / बलसंपन्नेण त जयसंपराणेण त 4, सव्वत्थ पुरिसजाया पडिवक्खो, 31 / चत्तारि कंथगा पन्नत्ता तंजहा— रूवसंपन्ने णाममेगे णो जयसंपन्ने 4, 32 / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा-रूवसंपन्ने नाममेगे णो जयसंपन्ने 4, 33 // चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहासीहत्ताते णाममेगे निक्खंते सीहत्ताते विहरइ सीहत्ताते नाममेगे निक्खंते सियालत्ताए विहरइ सीयालत्ताए नाममेगे निक्खते सीहत्ताए विहरइ सीयालत्ताए नाममेगे निक्खंते सीयालत्ताए विहरइ 34 ॥सू० 327|| चत्तारि लोगे समा पनत्ता तंजहा-अपइट्ठाणे नरए 1 जंबुद्दीवे दीवे 2 पालते जाणविमाणे 3 सबट्ठसिद्धे महाविमाणे 4, 1 / चत्तारि लोगे समा सपक्खि सपडिदिसिं पन्नत्ता तंजहा-सीमंतए नरए समयक्खेत्ते उडुविमाणे ईसीपभारा पुढवी, 2 ॥सू० 328 // उड्ढलोगे णं चत्तारि विसरीरा पन्नत्ता तंजहा—पुढविकाइया श्राउकाइया वणस्सइकाइया उराला तसा पाणा, 1 / अहो लोगे णं चत्तारि बिसरीरा पन्नत्ता तंजहा—एवं चेव, एवं तिरियलोएवि 4, 2 ॥सू० 321 // चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहां-हिरिसत्ते हिरिमणसत्ते चलसत्ते थिरसत्ते ॥सू. 330 // चत्तारि सिजपडिमायो पन्नत्ताश्रो, चत्तारि वत्थपडिमायो पनत्तायो, चत्तारि पायपडिमायो पन्नत्तायो, चत्तारि ठाणपडिमायो पन्नत्तायो॥सू० 331 // चत्तारि सरीरगा जीवफुडा पन्नत्ता तंजहा-वेउविए श्राहारए तेयए कम्मए, चत्तारि सरीरगा कम्मुम्मीसगा पनत्ता तंजहा--पोरालिए वेउब्विए आहारते तेउते ॥सू. 332 // चउहि अत्थिकाएहिं लोगे फुडे पन्नत्ते तंजहा-धम्मत्थिकारणं अधम्मत्थिकाएणं जीवत्थिकाएणं पुग्गलस्थिकाएणं, चउहिं बादरकातेहिं उववजमाणेहिं लोगे फुडे पन्नत्ते तंजहा-पुढविकाइएहिं श्राउकाइएहिं वाउकाइएहिं वणस्सइकाइएहिं ॥सू० 333 // चत्तारि पएसग्गे